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‘‘स्वामी दयानन्द जी ने क्या खोजा, क्या पाया?’’ परिवर्धित संस्‍करण

आर्य समाज हमेशा भाषा पर संयम रखे बिना सवाल में सवाल करता रहा है अब 1 नहीं उसको 108 जवाब देने हैं,  मित्रों की आपसी बातचीत से पता चलता है कि प्रस्‍तुत पुस्‍तक का पहला एडिशन बहुत कामयाब रहा था उसकी सफलता पर एक अलग आर्टिकल लिखा जा सकता है, यह परिवर्धित संस्‍करण है जिसमें कल के अनुभव और आजकल की आवश्‍यकताओं का खयाल रखते हुए, आर्य समाज की किताबों से ही ली गयी बातों की समीक्षा करते हुए उन पर एक सौ आठ प्रश्‍न किए गए हैं, इधर दी गयी विषय सूची पर नजर डालेंगे तो समझ लेंगे कि प्रस्‍तुत पुस्‍तक में आर्य समाज के संबन्‍ध में छपी सभी पिछली किताबों से बहुत कुछ अलग हट कर है , ब्‍लाग की एक पोस्‍ट में सबकुछ इधर देना संभव नहीं था इस लिए 'स्वागत' हीरालाल कर्दम वरिष्ठ साहित्यकार और  डा. अयाज़ अहमद की प्रस्तावना के साथ डा. अनवर जमाल की पुस्‍तक की भूमिका इस पोस्‍ट में पढ सकेंगे, पूरी किताब के लिए लिंक दिए गए हैं। 

‘‘स्वामी दयानन्द जी ने क्या खोजा, क्या पाया?’’
डा. अनवर जमाल 
Hindi Unicode Book Part-1 से 4 

किताब पर आधारित इस ब्लाग की खास बात यह है कि108 बातें 108 पोस्ट में यानि अलग अलग दी गयी हैं हर पोस्ट में विषय से संबन्धित चित्र और पूरी PDF पुस्तक के दो लिंक भी दिया गये है

हक़ प्रकाश बजवाब सत्‍यार्थ प्रकाश

  • आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश के चौदहवें अध्याय का अनुक्रमिक तथा प्रत्यापक उत्तर(सन 1900 ई.). लेखक: मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी  PDf available in archive and otther


मुकददस रसूल बजवाब रंगीला रसूल . लेखक: मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी
  • '''रंगीला रसूल''' १९२० के दशक में प्रकाशित पुस्तक के उत्तर में मौलाना सना उल्लाह अमृतसरी ने तभी उर्दू में ''मुक़ददस रसूल बजवाब रंगीला रसूल'' लिखी जो मौलाना के रोचक उत्‍तर देने के अंदाज़ एवं आर्य समाज पर विशेष अनुभव के कारण भी बेहद मक़बूल रही ये  2011 ई. से हिंदी में भी उपलब्‍ध है। लेखक १९४८ में अपनी मृत्यु तक '' हक़ प्रकाश बजवाब सत्यार्थ प्रकाश''  की तरह इस पुस्तक के उत्तर का इंतज़ार करता रहा था ।
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  • and easy download here  muqaddas rasool hindi 
  • Muqaddas Rasool Ba-Jawab Rangila Rasool [ Hindi ]
    by Maulana Sanaullah Amritsari (Author)
    an Arya leader and scholar, consequently wrote a book "RANGILA RASOOL"bringing out the alleged 'disreputable' side of life history of Prophet Mohammad of Islam. Maulana Sanaullah Amritsari in his book Muqaddas Rasool (The Holy Prophet) refuted all the allegations.
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स्वागत
डा. अनवर जमाल साहब की पुस्तक ‘दयानन्द जी ने क्या खोजा, क्या पाया?’ का प्रथम संस्करण अगस्त 2009 में प्रकाशित हुआ। इसका सभी वर्ग के पाठकों द्वारा जिस उत्साह के साथ स्वागत किया गया। उसने बहुत जल्द इसके दूसरे संस्करण की ज़रूरत पैदा कर दी लेकिन डाक्टर साहब की व्यस्तता के चलते यह काम समय लेता चला गया। अब इसी पुस्तक का दूसरा संस्करण आपके हाथों में है। इस नए संस्करण के टाइटिल में आर्य समाज के संस्थापक के नाम के साथ स्वामी शब्द की वृद्धि कर दी गई है क्योंकि वेद-क़ुरआन साहित्य के रचयिता एक बड़े मुस्लिम आलिम ने ऐसा करने के लिए कहा था। उचित सलाह देने और उसकी क़द्र करने की यह एक अच्छी मिसाल है। इस नए संस्करण में बहुत से ऐसे तथ्य और दे दिए गए हैं जो कि पहले संस्करण में नहीं हैं। इस तरह यह प्रथम संस्करण से अलग एक नई पुस्तक बन गई है कि अगर दोनों पुस्तकें साथ-साथ छपती रहें तो भी दोनों अपनी जगह पूरा नफ़ा देती रहेंगी।
यह पुस्तक हिन्दी साहित्य में अपनी तरह की पहली पुस्तक है। जिसमें डा. अनवर जमाल साहब ने स्वामी दयानन्द जी के सिद्धान्तों की व्यवहारिकता को स्वयं स्वामी जी के जीवन के दर्पण में देखने का प्रयास किया है। इस कार्य के लिए उन्होंने काफ़ी रिसर्च की है। उनकी रिसर्च का उद्देश्य आर्य समाज मत के संस्थापक को दोड्ढ देना नहीं है बल्कि उन अवरोधों को चिन्हित करना है जिन्हें हटाने का स्वाभाविक परिणाम वैदिक धर्म और इसलाम के मानने वालों के बीच क्रमशः एकता और एकत्व की स्थापना है।
लेखक ने अपने शोध में पाया है कि सबका ईश्वर और सारी मानव-जाति का धर्म एक ही है, दोड्ढ यदि कहीं है तो मतभेद के कारण है और यह मतभेद दार्शनिकों और आलिमों की निजी व्याख्याओं के कारण है। ईश्वर के ज्ञान और उसकी विशाल प्रकृति के सभी रहस्यों को कोई सामान्य मनुष्य अपनी सीमित बुद्धि से बिल्कुल ठीक ठीक जान ले, यह संभव नहीं है। समय के साथ ये मतभेद स्वयं ही दूर होते जा रहे हैं, यह हड्र्ढ का विषय है। हम इन परिवर्तनों को जागरूक होकर अंगीकार कर सकें तो हिन्दू-मुस्लिम चेतना के एक होने में ज़्यादा देर नहीं लगेगी। जिसके असर से पूरी दुनिया में फैले हुए हिन्दू-मुस्लिम एक अजेय शक्ति बन जाएंगे। इसके बाद भारत पूरे विश्व का नेतृत्व करने की शक्ति सहज ही अर्जित कर लेगा। इस महान एकता में बाधक बनने वाले विचारों को ईश्वर की प्रकृति सुप्त और मृत करते हुए भारतीय चेतना का परिमार्जन निरन्तर कर ही रही है। 
‘बल्कि हम तो असत्य पर सत्य की चोट लगाते हैं तो वह उसका सिर तोड़ देता है। फिर क्या देखते हैं कि वह मिटकर रह जाता है और तुम्हारे लिए तबाही है उन (असत्य) बातों के कारण जो तुम बनाते हो।’ -क़ुरआन 21,18
       सो सभी के लिए ज़रूरी है कि इस काल क्रिया को गंभीरतापूर्वक लें और इसे समझकर अपना भरपूर सहयोग दें। मतभेद वाले मुद्दों पर ज़ोर देने के बजाय वेद-क़ुरआन के समान सूत्रों पर मिलकर काम करने से समाज में प्रेम और सहयोग की भावना बढ़ेगी। यह निश्चित है। इसी सराहनीय उद्देश्य के लिए यह पुस्तक लिखी गई है।
देश की उन्नति और मानव एकता के लिए काम करने वाले बहुत से भाईयों ने हमारे पते पर संपर्क करके यह पुस्तक प्राप्त की और उन्होंने इसे विद्वानों तक पहुंचाया। ऐसे भाईयों में ख़ास तौर पर मास्टर अनवार अहमद साहब, पुराना बाज़ार, हापुड़ उ. प्र., मोबाईल नं. 08909003427 और जनाब शफ़ीक़ अहमद साहब, ज़िला सहारनपुर का नाम लिया जा सकता है। उनके ज़रिए से यह पुस्तक बहुत से आर्य विद्वानों तक पहुंची। विद्वान लेखक के साथ हम मास्टर साहब का भी शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्होंने लेखक महोदय के द्वारा एक आर्य भाई कर्म सिंह शास्त्री जी के सवालों के जवाब में सौ पृष्ठ से ज़्यादा लिखे उनके एक विस्तृत जवाबी पत्र को पढ़ लिया, जिसे वह 8 वर्षों से अपनी अलमारी में रखे हुए थे। मास्टर साहब के बहुत आग्रह पर उन्होंने अपने इस शोध-पत्र के चन्द ख़ास बिन्दुओं को एक संक्षिप्त पुस्तक का रूप दे दिया जो कि बहुत सी ग़लतफ़हमियों को दूर करने का सशक्त माध्यम बन रही है। इंटरनेट के कारण इस पुस्तक को देश के साथ साथ विदेशों में भी पढ़ा और सराहा गया है। इस नवीन संस्करण को भी गूगल सर्च के माध्यम से आसानी से तलाश करके पढ़ा जा सकता है। पुस्तक का लिंक मंगवाने और उचित सुझाव देने के लिए भी पाठक ईमेल कर सकते हैं।
‘गायत्री मंत्र का रहस्य’ (अभी तक 3 भाग) डाक्टर अनवर जमाल साहब की एक और अद्भुत लेखमाला है, जिसमें उन्होंने इस वेद-मंत्र का ठीक शाब्दिक अनुवाद करने में सफलता पाई है। यही पहला और सही शाब्दिक अनुवाद वह कुंजी है जिससे मंत्र का पाठ करने वाले की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक चेतना का विकास एक साथ होता है और तुरंत से ही होना शुरू हो जाता है। उन्होंने इसमें तर्क सहित गायत्री मंत्र पर उठने वाली सभी गूढ़ आपत्तियों का निराकरण कर दिया है। इंटरनेट पर उनकी यह लेखमाला देखकर हमारा दिल चाहता है कि डाक्टर साहब गायत्री मंत्र पर अपने इस अमूल्य शोध को भी एक पुस्तक का रूप देकर सबके लिए उपलब्ध करा दें ताकि गायत्री मंत्र से लगाव रखने वाले सभी मनुष्यों का भला हो।

डा. अयाज़ अहमद
हिन्दी ब्लॉगर व सम्पादक ‘वन्दे ईश्वरम्’ मासिक
11 सितम्बर 2014
मेन मार्कीट, 117 साबुनग्रान 
देवबन्द, उ. प्र.  247554                                                    
email:  ayazdbd@gmail.com                                                                         
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प्रस्तावना
       यह विश्वविदित है कि परम आदरणीय ईशदूत मुहम्मद साहब (सल्ल.) पर इस्लाम धर्म का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ क़ुरआन अवतरित हुआ। सम्भवतः इसी कारण उनकी शिक्षाओं के विषय में भारत वर्ष ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में नर-नारियों की रुचि बढ़ती गई और इसी कारण से इस्लाम धर्म फलता-फूलता गया। बड़े-बड़े विद्वान, कलाकार-वैज्ञानिक, उद्योगपति, व्यवसायी, ग़रीब, अमीर हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल.) व पवित्र धार्मिक ग्रन्थ क़ुरआन की शिक्षाओं के बारे में भली-भाँति परिचित होते चले गये। 
कुछ यथास्थितिवादी कट्टरपंथी मनीड्ढियों, स्वामी, महात्माओं ने इस्लाम के पवित्र धार्मिक ग्रन्थ क़ुरआन को लेकर उनकी शिक्षाओं को तोड़-मरोड़ कर तथा अशोभनीय आलोचना लिखकर जन-समूह को गुमराह, भ्रमित करने का दुस्साहस कर कुप्रयास किया है। प्रस्तुत पुस्तक ‘‘स्वामी दयानन्द जी ने क्या खोजा, क्या पाया?’’ में उन आपत्तियों तथा तथ्यों का विश्लेषण करते हुए जन-समूह के मन-मस्तिष्क में व्याप्त आशंकाओं व दुविधाओं को दूर करने का सफल प्रयत्न किया गया है।
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने अपने सामाजिक एवं धार्मिक ग्रन्थ ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ के अधिकांशः समुल्लास में इस्लाम धर्म, क़ुरआन, जैन धर्म, बुद्ध धर्म एवं ईसाई धर्म के प्रति चुनौतीपूर्ण शब्दों में अशोभनीय कटाक्ष किया है, जो कि वास्तव में ही निन्दनीय प्रतीत होता है। विद्वान लेखक डा. अनवर जमाल ने प्रस्तुत पुस्तक में बहुत ही सारगर्भित रूप से स्पष्टीकरण कर अपनी विद्वत्ता का परिचय दिया है, जो कि सराहनीय है और लेखक बधाई के पात्र हैं।
यहां पाठक बंधुओं को स्मरण कराना चाहूंगा कि भारत वर्ष  में जाति-व्यवस्था एक ऐसी इमारत है, जिसमें सीढ़ियाँ नहीं हैं और जो जहाँ है वह सदैव वहीं रहने को बाध्य है। आखि़र ऐसा क्यों? यह प्रश्न मुझे ही नहीं अपितु प्रत्येक बुद्धिजीवी को निशदिन कचोटता रहता है? आर्यों द्वारा थोपी गई जाति आधारित असमानतावादी सामाजिक कुव्यवस्था का स्वामी दयानन्द ने खण्डन क्यों नहीं किया, आश्चर्य होता है?
प्रस्तुत पुस्तक के लेखक डा. अनवर जमाल जी ने इस आधुनिक युग में स्वामी जी की पुस्तक सत्यार्थ-प्रकाश में उल्लिखित हिन्दू धर्म से अन्यत्र धर्मों की टीका टिप्पणी और आलोचनाओं पर एक प्रभावशाली ज़ोरदार प्रहार कर शिक्षित और राष्ट्रीय हित के विचारवान लोगों को यह चिन्तन-मनन करने के लिए विवश कर दिया है कि स्वामी जी ने देश-हित और जनहित में खोजा एवं पाया बहुत कम था। मात्र इसके कि उन्होंने कट्टरता को ही पनपाया।
सम्मानित लेखक डा. अनवर जमाल साहब का यह प्रयास बहुत ही सराहनीय व प्रशंसापूर्ण कार्य साहित्य क्षेत्र में सर्वदा मील का पत्थर माना जायेगा। वे इस शुभ कार्य के लिए बधाई के सुयोग्य पात्र हैं तथा सम्पादक मण्डल के सभी सदस्यों को बधाई देना चाहूंगा, जिनके अथक प्रयास से यह पुस्तक प्रकाशित हुई है। मुझे उन से आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि भविष्य में भी जनहित में दक़ियानूसी लेखकों पर अपनी टिप्पणी का प्रहार कर सर्वसमाज का मार्गदर्शन करते रहेंगे। मैं उनकी इस पुस्तक के लिए हृदय से आभार प्रकट करता हूँ।
भवतु सब्ब मंगलम्।

19.02.2014                                  

आपका शुभाकांक्षी 
हीरालाल कर्दम वरिष्ठ साहित्यकार                              
189, श्रद्धांजलि भवन, कोठी गेट 
जनपद हापुड़ (उ. प्र.)
मोबाईल नं. 9997487981

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भूमिका
      इन्सान का रास्ता नेकी और भलाई का रास्ता है। यह रास्ता सिर्फ उन्हें नसीब होता है जो धर्म और दर्शन (Philosophy) में अन्तर जानने की बुद्धि रखते हैं। धर्म ईश्वर द्वारा निर्धारित होता है जो मूलतः न बदलता है और न ही कभी बदला जा सकता है, अलबत्ता धर्म से हटने वाला अपने विनाश को न्यौता दे बैठता है और जब यह हटना व्यक्तिगत न होकर सामूहिक हो तो फिर विनाश की व्यापकता भी बढ़ जाती है।
दर्शन इन्सानी दिमाग़ की उपज होते हैं। ये समय के साथ बनते और बदलते रहते हैं। धर्म सत्य होता है जबकि दर्शन इन्सान की कल्पना पर आधारित होते हैं। जैसे सत्य का विकल्प कल्पना नहीं होती है। ऐसे ही धर्म की जगह दर्शन काम नहीं दे सकता। दर्शन में सही और लाभदायक शिक्षाएं होती हैं लेकिन इनसे लाभ लेने के लिए भी धर्म का ज्ञान अनिवार्य है। 
धर्म को भुलाकर दर्शन के अनुसार जीना ग़लत ढंग से जीना है, जिसका अंजाम तबाही की शक्ल में सामने आता है। इसीलिए हज़ारों वर्ष पहले हमारे समाज में बहुदेववाद, जातिवाद और अन्याय पनपा, युद्ध हुए। एक आर्यावर्त में हज़ारों देश बने। विदेशी आक्रमण से ज़्यादा देशी आक्रमण हुए। परायों से ज़्यादा अपनों का ख़ून, अपनों के हाथों बहता रहा। विद्वान बताते हैं कि अकेले महाभारत के युद्ध में ही 1 अरब 66 करोड़ मनुष्य मारे गए। हज़ारों युद्ध और भी हुए, लाखों तबाहियाँ हुईं और आखि़रकार भारतीय विदेशियों के ग़ुलाम बन गए। वे आज भी क़र्ज़दार हैं। भारत को तीसरी दुनिया के देशों में गिना जाता है। इस तरह धर्म वाला विश्वगुरू भारत दर्शनों पर चलकर बर्बाद हो गया।
भारत एक धर्म प्रधान देश था लेकिन बाद में दार्शनिकों ने इसे दर्शन प्रधान बना दिया। आज हर तरफ़ दर्शनों का बोलबाला है। दर्शनों की भीड़ में धर्म कहीं खो गया है। आज वैदिक धर्म में अग्नि का बड़ा महत्व है। अग्नि के बिना यज्ञ-हवन नहीं हो सकता। वैदिक धर्म के 16 संस्कारों में से कोई एक भी बिना अग्नि के संपन्न नहीं हो सकता। जबकि अग्नि की खोज से पहले मनुष्य परमेश्वर की उपासना और अंतिम संस्कार आदि अग्नि के बिना ही करता था। 
अग्नि की खोज के बाद धर्म के रूप को बदल दिया गया। पहले जिस धर्म में उपासना के लिए ध्यान और नमन था, उसमें अब हवन भी शुरू कर दिया। इस तरह धर्म से हटने और दर्शन पर चलने की शुरूआत हुई। इन्हें लिखा गया तो वर्तमान वेद, उपनिषद व दर्शन आदि बन गए। समय के साथ यज्ञ के रीति रिवाज जटिल हो गए। राजकोष जनकल्याण के कामों पर ख़र्च होने के बजाय महीनों चलने वाले महंगे यज्ञों में स्वाहा होने लगा। तब बौद्ध, जैन और चार्वाक आदि ने जनता के विरोध को स्वर दिया। उनकी बातों में भी दर्शन था। यज्ञ करने वाले और उनका विरोध करने वाले, दोनों ही दर्शन की बातें कर रहे थे। धर्म कहीं पीछे छूट चुका था।
ये अनेकों दर्शन धर्म की जगह लेते चले गए। इसी से विकार जन्मे। सुधारकों ने उन्हें सुधारने का प्रयास भी किया। लाखों गुरूओं के हज़ारों साल के प्रयास के बावजूद यह भारत भूमि आज तक जुर्म, पाप और अन्याय से पवित्र न हो सकी। कारण, प्रत्येक सुधारक ने पिछले दर्शन की जगह अपने दर्शन को प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया, धर्म को नहीं। उन्हें पता ही न था कि दर्शनों की रचना से पूर्व धर्म का स्वरूप क्या था ?
स्वामी दयानन्द जी भी एक ऐसे ही दार्शनिक थे। धर्म को न जानने के कारण उन्होंने सुबह शाम अग्निहोत्र (हवन) करना हरेक मनुष्य का कर्तव्य निश्चित कर दिया और न करने वाले को सत्यार्थप्रकाश, चौथे समुल्लास (पृष्ठ 65) में शूद्र घोषित कर दिया। आर्य समाज मंदिरों में भी दोनों समय हवन नहीं होता। आर्य समाज के सदस्य और पदाधिकारी तक दोनों समय हवन नहीं करते, कर भी नहीं सकते। सुबह शाम हवन, वह आर्य समाजियों से अपने सामने भी न करा पाए।
नतीजा यह हुआ कि जो लोग उनके पास आर्य बनने के लिए आते थे, वे हवन न करने के कारण शूद्र अर्थात मूर्ख बनते रहे। स्वामी दयानंद जी के अनुसार सनातनी पंडित लोगों को मूर्ख बना रहे थे और उनका विरोध करने वाले स्वामी जी ख़ुद भी आजीवन यही करते रहे। उनके बाद भी यह सिलसिला जारी है। उनकी घोर असफलता का कारण केवल यह था कि उन्हें दर्शन का ज्ञान था, धर्म का नहीं। 
धर्म में ध्यान और नमन है, हवन नहीं। अग्नि की खोज से पहले भी धर्म यही था और आज भी धर्म यही है। सनातन काल से मनुष्य का धर्म यही है। इसलाम इसी सनातन धर्म की शिक्षा देता है। इसलाम का विरोध वही करता है, जिसे धर्म के आदि सनातन स्वरूप का ज्ञान नहीं है। ऐसे ही दार्शनिकों के कारण बहुत से मत बने और अधिकतर मनुष्य धर्म से हटकर विनाश को प्राप्त हुए।
जिस भूमि के अन्न-जल से हमारी परवरिश हुई और जिस समाज ने हम पर उपकार किया, उसका हित चाहना हमारा पहला कर्तव्य है। मानवता को महाविनाश से बचाने के उद्देश्य से ही यह पुस्तक लिखी गई है। जगह-जगह मिलने वाले दयानन्दी बंधुओं के बर्ताव ने भी इस पुस्तक की ज़रूरत का अहसास दिलाया और स्वयं स्वामी जी का आग्रह भी था-
‘इस को देख दिखला के मेरे श्रम को सफल करें। और इसी प्रकार पक्षपात न करके सत्यार्थ का प्रकाश करके मुझे वा सब महाशयों का मुख्य कर्तव्य काम है।’ (भूमिका, सत्यार्थप्रकाश, पृष्‍ठ 5, 30वाँ संस्करण)
सो हमने अपना कर्तव्य पूरा किया। अब ज़िम्मेदारी आप की है। आपका फै़सला बहुत अहम है। अपना शुभ-अशुभ अब स्वयं आपके हाथ है। स्वामी जी के शब्दों में हम यह विनम्र निवेदन करना चाहेंगे कि
‘यह लेख हठ, दुराग्रह, ईष्र्या, द्वेष, वाद-विवाद और विरोध घटाने के लिए किया गया है न कि इनको बढ़ाने के अर्थ। क्योंकि एक दूसरे की हानि करने से पृथक् रह परस्पर को लाभ पहुँचाना हमारा मुख्य कर्म है।’ (सत्यार्थप्रकाश, अनुभूमिका 4, पृ.360)
‘इस मेरे कर्म से यदि उपकार न मानें तो विरोध भी न करें। क्योंकि मेरा तात्पर्य किसी की हानि या विरोध करने में नहीं किन्तु सत्याऽसत्य का निर्णय करने कराने का है।’ (सत्यार्थप्रकाश, अनुभूमिका, पृ.186)

विनीत, 
डा. अनवर जमाल               
दिनांक - बुद्धवार, 29 जुलाई 2009
श्रावण, अष्टमी  द्वितीया, सं. 2066 
द्वितीय, दिनांकः रविवार, 15 सितम्बर 2013 
9 ज़ी-क़ाअदा 1434 हिजरी
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¤ क्या से क्या हो गया?
     वास्तव में परम प्रशंसा, स्तुति और वन्दना उस परमेश्वर के लिए है जो अपनी पैदा की हुई सारी चीज़ों का पालनहार है और उन्हें पूर्णता तक पहुंचाने में सक्षम है। वह एक है। सबका मालिक वही एक है। सब चीज़ें उसी के नियमों के अधीन हैं। यह परम सत्य है। आदिकाल से इस एक सत्य को विद्वानों ने बहुत से अलंकारों से सुशोभित करते हुए कहा है। 
      जब युग बदले, भाड्ढा बदली  और विद्वान भी बदल गए। राजा बदले, प्रजा बदली और उनके देश भी बदल गए। सोच बदली और परम्पराएं भी बदल गईं। तब जो रूपक अलंकार थे, उन्हें कथा समझ लिया गया। अर्थ का अनर्थ हो गया। अधर्म के काम धर्म समझ लिए गए। राजा, प्रजा, और प्रकृति सबकी स्तुति होने लगी। सबको देवता समझ लिया गया। बाद के लोगों ने पुराना काव्य नये काव्य के साथ संकलित कर दिया तो देव की स्तुति के साथ देवताओं की स्तुति भी मिश्रित हो गई। नासमझी से उत्पन्न बहुदेववाद को चतुर लोगों ने मूर्तिपूजा का रूप देकर अपनी रोज़ी का जुगाड़ कर लिया। इस तरह धर्म का लोप हुआ और उसकी जगह अधर्म को दे दी गई। समाज के नीति-नियम यही अधर्मी बनाने लगे। इन्हीं अधर्मियों के कारण अत्याचार और युद्ध हुए और मानव जाति बर्बाद हो गई। दोड्ढ दिया गया निर्दोड्ढ धर्म को। विचारकों के मन को सवालों ने बेचैन किया तो धर्म का लोप करने वालों ने अध्यात्म से उन्हें भी शांत कर दिया। वे कहने लगे कि मन को विचारशून्य बना लो, परम शांति मिल जाएगी। तर्क त्याग दो, श्रद्धा उपलब्ध हो जाएगी।

¤ स्वामी दयानन्द जी का जन्म स्थान अज्ञात है
     भारतीय समाज के हालात ऐसे थे, जब स्वामी दयानन्द जी ने जन्म लिया। स्वामी जी ने स्वकथित जीवनचरित्र में संवत् 1881 विक्रमी में गुजरात के मोरवी नगर में औदीच्य ब्राह्यण परिवार में अपना जन्म होना बताया है। स्वामी श्रद्धानन्द जी की पुस्तक ‘आर्यपथिक लेखराम’ पृष्ठ 80 से ज्ञात होता है कि लेखराम जैसे श्रद्धालुओं ने सन 1892 ई. में मोरवी नगर के साथ टंकारा में भी स्वयं जाकर ढूंढा लेकिन वे उनका कुल तो क्या, जन्मस्थान तक न ढूंढ पाए। उन्होंने किस जाति में और कहां जन्म लिया?, इसे कोई नहीं जानता। वास्तव में उनका जन्म स्थान आज तक अज्ञात है। 


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‘‘स्वामी दयानन्द जी ने क्या खोजा, क्या पाया?’’
डा. अनवर जमाल 
Hindi Unicode Book Part-1 से 4 
लगभग 6 M.B. की पी डी एफ इधर से प्राप्‍त कर सकते हैं
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or
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विषय सूची

विषय एवं पी. डी. एफ. का पृष्‍ठ नंबर
स्वागत  7   
प्रस्तावना 10   
भूमिका 12   
क्या से क्या हो गया? 15   
स्वामी दयानन्द जी का जन्म स्थान अज्ञात है 15   
स्वामी जी डरपोक और लालची न थे? 17   
हमारा मक़सद 17   
सच्चा योगी गुरू न मिला, नशे की लत पड़ी 18   
विद्या पाकर स्वामी जी ने शैव की स्थापना की? 18   
स्वामी जी की राय शैव मत के बारे में 19   
स्वामी जी के समय में हिन्दू समाज की दशा 19   
मैं कौन हूँ और मुझे क्या करना चाहिये? 20   
स्वामी जी के घर छोड़ने का उद्देश्य था मृत्यु समय के दुःखों से बचना 21   
स्वामी जी बच न पाए मृत्यु समय के दुःखों से 21   
मक़सद और तरीक़ा, दोनों ग़लत 22   
सीढ़ी तोड़ने के कारण स्वामी जी को न परमेश्वर मिला और न सुयोग्य शिष्य 23   
विश्वस्त सेवक भी सब निकम्मे निकले 24   
स्वामी जी के विषय में उनके पिताजी की राय 24  
  पिता के डर से असत्य भाषण 24   
स्वामी जी की असफलता का कारण 25   
क्या स्वामी जी का आचरण उनके दर्शन के अनुकूल था? 26   
स्वामी जी की मौत के विषय में झूठे प्रचार का उद्देश्य?   29   
स्वामी जी बूढ़े को जवान करने वाली भस्म बनाना जानते थे? 30   
भांड के समान स्तुति? 30   
क्या स्वामी दयानन्द जी की अविद्या रूपी गाँठ कट गई थी? 31   
बड़े अपराधी को माफ़ी तो छोटे को सज़ा क्यों? 32   
वेदों में तोप और बन्दूक़ें?   33   
क्या दयानन्द जी वेदों का वास्तविक अर्थ जानते थे? 34   
सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रों पर वेद और वैदिक आर्य? 34   
क्या परमेश्वर भी कभी असफल हो सकता है? 35   
स्वामी जी की कल्पना और सौर मण्डल 35   
आकाश में सर्दी-गर्मी होती है, सर्दी से परमाणु जम जाते हैं, भाप से मिलकर किरण बलवाली होती है? 36   
सृष्टि संरचना की ग़लत कल्पना को वैदिक सिद्धान्त समझ बैठे स्वामी जी? 37  
परमाणु टूटने के साथ ही स्वामी जी का दर्शन
मिथ्या सिद्ध हो गया  37   
अग्नि के विषय में भी स्वामी जी का मत ग़लत है 38   
सब एक माता पिता की सन्तान हैं 39   
वेद में क्यों नहीं मिलता स्वामी जी का बताया वेदमंत्र 39   
वेदविरुद्ध पोपलीला चलाने वाला नास्तिक होता है 40   
ईश्वरीय ग्रन्थ में झूठ नहीं होता 40   
सूर्य किसी लोक या केन्द्र के चारों ओर नहीं घूमता 41   
वेदों का काल जानने में भी असफल रहे स्वामी जी 41   
स्वामी जी सृष्टि की उत्पत्ति का काल जानने में भी असफल रहे 42   
आर्य ज्योतिषियों का फलित भी ग़लत और गणित भी ग़लत 43   
स्वामी जी मनुष्य की उत्पत्ति का काल जानने में भी असफल रहे 43   
वेदों की रचना के समय का निर्णय वेदों के आधार पर 45   
बहुत अधिक उन्नति के बाद मनुष्य को वेद मिले 46  
  हम वेद का आदर करते हैं 48   
वेद का सच्चा अर्थ जानने का फल 48   
स्वामी जी की प्रार्थना क्यों पूरी नहीं हुई? 49   
वास्तव में वेद कब और कैसे बने? 50   
अनुक्रमणी और मंत्र में मंत्रकर्ता ऋषियों के नाम 52   
वेदों में नए नए मंत्र 54   
वेदों में प्राचीन व नवीन ऋषियों के मंत्र संकलित हैं 55   
वेदमंत्रों की रचना ऋषियों ने की 55   
ऋषियों के इतिहास की जानकारी आवश्यक है 55   
राजाओं के इतिहास की जानकारी भी ग़लत 56   
सब्ज़ियां खाने से जीव को पीड़ा नहीं होती? 57   
शाकाहार श्रेष्ठ क्यों माना जाए? 58   
वेदपाठी सन्यासी इन्जीनियर से नीचे और दैत्य के बराबर कैसे? 59   
आवागमन : समाज का पतन 61   
आवागमन का त्याग ज़रूरी है देश की सीमाओं की रक्षा के लिये 61   
नपुंसक क्यों पैदा होते हैं? 62   
आवागमन कैसे संभव है? 63  
क्या दुखी मनुष्य पिछले जन्म का पापी है? 64   
दुःख का कारण हमेशा पापाचरण नहीं होता 65   
कष्ट का कारण दूसरों के कर्म भी होते हैं 67   
आवागमन को मानना महापाप क्यों है? 67   
आवागमन और विधवा जीवन 68   
स्वामी जी द्वारा हिन्दू धर्म के तीर्थ स्थल का अपमान- 69   
विधवा विवाह सच्चे धर्म का एक मुख्य आदेश है 70   
...क्योंकि हरेक बच्चा मासूम और निष्पाप है 71   
जीवन के उद्देश्य से भटका देता है आवागमन 71   
आवागमनः  एक बड़ा धंधा 72   
इसलाम आवागमन से मुक्ति तुरंत देता है 72   
विकास और सफलताः जीवन का वास्तविक उद्देश्य 73   
आवागमनः दर्शन की एक मूल भूल 73   
क्या मुक्ति संभव है? 74   
क्या ‘नियोग’ की व्यवस्था ईश्वर ने दी है? 74   
आर्य लोगों की दुर्दशा कैसे राजाओं के कारण हुई? 76   
कन्या पैदा करने के लिए औरत को ज़िम्मेदार समझना ग़लत है 78  
  कई अरब लड़के-लड़कियों का विवाह असंभव बनाते वैदिक नियम 79   
वैदिक धर्म का लोप क्यों हुआ? 80   
स्वामी जी को क्या पता कि पति-पत्नी के संबंध क्या होते है? 81   
बच्चे पैदा करना मुश्किल क्यों हुआ? 82   
वैदिक संस्कारों के बिना भी उत्तम गुणों की प्राप्ति संभव है 84   
वैदिक संस्कारों का ख़ात्मा 84   
वैदिक संस्कारों को पुनः प्रचलित करने में असफल85   
ब्रह्मचर्य की रक्षा कैसे संभव है? 86   
विवाह संस्कार का ख़ात्मा 86   
मृतक को जलाने की शुरूआत कैसे हुई? 87   
मृतक को दफ़न करना ही अंतिम संस्कार का सही तरीक़ा है 88   
भीख मांगने पर मजबूर कर सकता है दाह संस्कार 89   
दफ़नाना सहीः दो संन्यासियों की गवाही 90   
दफ़नाना सहीःवेद की गवाही 90  
क्या कोई मूर्ख व्यक्ति चतुर और निपुण हो सकता है? 90   
बच्चों को शिक्षा देने में भेद-भाव नहीं करना चाहिए 91   
स्वामी जी वर्ण का आधार जन्म को ही मानते थे 92   
मनु के नाम पर भेदभाव मत फैलाओ 92   
बिना विचारे मौत की सज़ा देना ठीक कैसे? 93   
हवन सांस लेने की तरह अनिवार्य 93   
शूद्र कौन? 95   
हवन न करने वाले शूद्रवत् हैं 95   
हवन से नमन की ओर आ चुका है समाज 96   
हवन की सामग्री देवताओं का भोजन? 97   
अन्य धर्मग्रन्थों की समीक्षा की निरर्थक चेष्‍टा 97   
गुदा से साँप लेने की आज्ञा वेद में? 98   
हठ, दुराग्रह और पक्षपात क्यों? 99   
क़ुरआन और तफ़्सीर (भाष्य) का अंतर समझने में असफल 100   
अपनी पुस्तकों को मिलावट से बचाने में असफल 102   
मनु के धर्म की शिक्षा देने वाले क़ुरआन का विरोध क्यों? 103  
मनुस्मृति को एक अरब छियानवे करोड़ आठ लाख बावन हज़ार नौ सौ छहत्तर वर्ष पुराना मानना ग़लत है 103   
चार युगों की कल्पना भी ग़लत निकली 105   
प्रक्षिप्त ग्रन्थों को विषयुक्त अन्न की भाँति छोड़ने का आदेश 105   
मनु की नहीं, उनके विरोधियों की देन है ऊँच-नीच 105   
क़ुरआन में मनु का सम्मान सहित वर्णन 106   
मनुः एक आदर्श मनुष्य 107   
‘असली वेद’ पढ़ने के लिए चाहिए ‘प्रकाश’ और ‘दृष्टि 108   
धरती का एकमात्र अजर अमर और अक्षय ग्रन्थ 109   
स्वामी जी की कसौटी पर ही उनका मत झूठा ठहरा 110   
स्वामी जी वर्ण व्यवस्था को कर्म के आधार पर मानने में असफल रहे 111   
इसलाम की जानकारी और शिष्टाचार का घोर अभाव 112   
समीक्षा 113   
भागवत को पांव लगाना और हिन्दू गुरू के चित्र पर जूते मारना निन्दनीय है
115  
धार्मिक भावनाएं आहत करना ठीक नहीं 115   
अंग्रेज़ी राज को ‘सुराज’ बताया 116   
अंग्रेज़ ने ख़ुश होकर स्वामी  जी से ‘हाथ मिलाया’ 116   
अंग्रेज़ों ने स्वामी जी की रक्षा की 116   
‘डिवाइड एंड रूल’ : अंग्रेज़ों की नीति 117   
देशभक्त अपराधी, अंग्रेज़ महारानी दयालु माता? 117   
भारत की स्त्रियाँ व्यभिचारिणी, अंग्रेज़ महिलाएं सदाचारिणी? 118   
मुस्लिम शासन काल से पहले अपहरण और बलात्कार विवाह का एक ­प्रकार माने जाते थे 119   
वेद-स्मृति के अनुसार परदा व्यवस्था 120   
भारतीय नारी के हाथ का नहीं खाया स्वामी जी ने 121   
ऊँच-नीच और छूत-छात मिटी, बराबरी और भाईचारा बढ़ा 122   
अंत में झूठ का पर्दाफ़ाश हो जाता है 123   
ऋषि कौन होता है? 124   
ज्ञान किसे कहते हैं? 124  
  स्वामी जी की मिसाल उन्हीं के शब्दों में 125   
सत्य को स्वीकारना बड़े साहस का काम है 125   
सत्यार्थप्रकाश आदि ग्रन्थों का क्या करें? 125   
स्वामी जी को सफलता नहीं मिली 126   
सच्चे गुरु की खोजः वर्तमान समाज की ज़िम्मेदारी 128   
जो ढूंढता है वह पाता है लेकिन ... 128   
ढूंढिये, लेकिन वहाँ, जहाँ कि वह सचमुच है 129   
वैदिक विज्ञान से सत्य ढूंढना सीखिए 129   
माल, बेटे, बारिश और भरपूर फ़सल पाने के लिए 131   
क्षमा से बीमारी का इलाज भी संभव है 132   
क्षमा के ज़रिए ग़रीबी और कैंसर से मुक्ति पाई 133   
उपयोगी ग्रन्थ 135  
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पूरी पुस्‍तक इधर पढें
Hindi Unicode Book Part-1 से 4 

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