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औरंगज़ेब ने मन्दिर तोडा तो मस्जिद भी तोडी लेकिन क्यूं? aurangzeb

तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।। -
पुस्‍तक एवं लेखक:‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार
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जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी।



इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः
तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।


औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को अढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बरबाद नहीं किया जाय, बलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’

इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि
औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभा नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है।

औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था।


औरंगजेब मुगल बादशाह द्वारा बाला जी मंदिर को दी गयी जमीन के कागज पुजारी मंगलदास जी दिखाते हुए Priest, Mangal Dasji, Balaji Mandir, Ramghat, Chitrakoot For Balaji Temple space allotted by Emperor Aurangzeb!
औरंगजेब मुगल बादशाह द्वारा बाला जी मंदिर को दी गयी जमीन के कागज पुजारी मंगलदास जी दिखाते हुए 
Priest, Mangal Dasji, Balaji Mandir, Ramghat, Chitrakoot 
For Balaji Temple space allotted by Emperor Aurangzeb!
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हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। (5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर (अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं।
(mandir dhane ki ghatna)
निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को मिरफतर कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है।
(masjid todne ki ghatna oranzeb)
गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालुगज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षों  में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया। ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और पनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोडने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।


Tipu sultan ke baare men is kitab men padhen
https://www.scribd.com/doc/20107281/टीपु-सुल-तान-Tipu-Sultan-Aurangzeb-औरंगजेब-True-Story-Hindi
https://www.scribd.com/doc/20107281/टीपु-सुल-तान-Tipu-Sultan-Aurangzeb-औरंगजेब-True-Story-Hindi
book: इतिहास के साथ यह अन्याय!!-- प्रो. बी. एन. पाण्डेय--:भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा एवं इतिहासकार, राज्यसभा के सदस्य और इतिहासकार प्रो. विश्म्भरनाथ पाण्डेय, महात्मा गांधी की वह टिप्पणी ‘यंग इण्डिया में आगे कहा गया है- ‘‘टीपू सुल्तान ने हिन्दू मन्दिरों विशेष रूप से श्री वेंकटरमण, श्री निवास और श्रीरंगनाथ मन्दिरों की ज़मीनें एवं अन्य वस्तुओं के रूप में बहुमूल्य उपहार दिए। कुछ मन्दिर उसके महलों के अहाते में थे यह उसके खुले जेहन, उदारता एवं सहिष्‍णुता का जीता-जागता प्रमाण है।

साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय,मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-25 औरंगज़ेब 
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हिंदू मन्दिर और औरंगजेब के फरामीन (orders) 
On ‪#‎Aurangzeb‬, Emperor of Hindustan, 1618-1707 and his relations with Hindus
Author: B N Pande ( freedom fighter, social worker, and an eminent parliamentarian in India)
Ataurraḥmān Qasmi
‪#‎Hindi‬ Book Link
https://archive.org/details/hindu-mandir-aur-auragzeb-ke-faramin-hindi-book
and
http://www.mediafire.com/download/a8a1311aanm81f6/hindu-mandir-aur-auragzeb-ke-farameen-hindi-book%282%29.pdf





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मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे antimawtar.blogspot.com

हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व सूचना हमें बाइबिल, तौरेत और अन्य धर्मग्रन्थों में मिलती है, यहाँ तक कि भारतीय धर्मग्रन्थों में भी आप (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणियाँ मिलती हैं। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की पुस्तकों में इस प्रकार की पूर्व-सूचनाएं मिलती हैं। इस पुस्तिका में सबको एकत्र करके पेश करने का प्रयास किया गया है।-----डा. एम. श्रीवास्‍तव
Read 3 books : antimawtar.blogspot.com (Urdu, Hindi & English)
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हज़रत मुहम‍मद (सल्ल.) और भारतीय धर्मग्रन्‍थ) pdf book


लेखकः डा. एम. श्रीवास्‍तव
e-book hazrat muhammed pbuh aur bhartiye dharam granth
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मधुर संदेश संगम, इ-20, अबुल फज्‍ल इन्‍कलेव, जामिया नगर, नई दिल्‍ली ञ 110025
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विषय
1. हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) और भारतीय धर्म-ग्रन्‍थ

2. मुहम्‍मद (सल्ल.) और वेद
नराशंस की चारित्रिक विशेषताओं की हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) से साम्‍यता-
(1‍) वाणी की मधुरता (2‍) अप्रत्‍क्ष ज्ञज्ञन रखने वाला (3‍) सुन्‍दर कान्ति के धनी (4‍) पापों का निवारक (5‍) पत्नियों की साम्‍यता (6‍) स्‍थानगत साम्‍यता (7‍) अन्‍य साम्‍यताएँ।

3. पुरणणों के प्रमाण
भविष्‍य पुराण और हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) * संग्राम पुराण की पूर्वृ-सूचना

4. कल्कि अवतार और हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.)
* अवतार का तात्‍पर्य * अ‍ंतिम अवतार के आने का लक्षण, * कल्कि का अवतार-स्‍थान *जन्‍मतिथि * अंतिम अवतार की विशेषताएँ--
(1‍) अश्‍वारोही और खड्गधारी (2). दुष्‍टों का दमन‍ (3‍) जगत्‍पति (4‍) चार भाइयों के सहयोग से युक्‍त (5) अंतिम अवतार (6‍) उपदेश और उत्‍त्‍र दिशा की ओर जाना (7) आठ सिद्धियों और गुणों से युक्‍त (8) शरीर से सुगन्‍ध का निकलना (9‍) अनुपम कान्ति से युक्‍त (1‍0) ईश्‍वरीय वाणी का उपदेष्‍टा

5. उपनिषद् में भी मुहम्‍मद (सल्ल.) की चर्चा
6. प्राणना‍थी (प्रणामी) सम्‍प्रदाय की शिक्षा
7. हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.) और बोद्ध धर्म ग्रन्‍थ
अंतिम बुद्ध-मैत्रेय मुहम्‍मद (सल्ल.) *मैत्रेय की मुहम्‍मद (सल्ल.) से समानता
8. जैन धर्म और हज़रत मुहम्‍मद (सल्ल.)

आमुख
अल्लाह अत्यंत कृपाशील और दयावान है। वही दृष्टि का निर्माता है। उसने अपने सर्जित जीवों में इनसान को श्रेष्ठ और महिष्ठ बनाया है। अल्लाह के सभी उदार अनुग्रहों और उसकी अनुकंपाओं की गणना करनी कठिन है, जो उसने इनसानों पर की है। उसकी इनसानों पर विशेष कृपा यह रही कि उनके मार्गदर्शक का प्रबंध किया और उन्हें सही रास्ता दिखाने के लिए अपने पैग़म्बरों, रसूलों और अवतारों को प्रत्येक क़ौम और समुदाय में भेजा। क़ुरआन में हैः ‘‘कोई क़ौम ऐसी नहीं गुजरी, जिसमें कोई सचेत करने वाला न आया हो।’’ (35: 24)
‘‘अवतार’’ का अर्थ यह कदापि सही नहीं है कि ईश्वर स्वयं धरती पर सशरीर आता है, बल्कि सच्चाई यह है कि वह अपने पैग़म्बर और अवतार भेजता है। उसने इनसानों के उद्धार, कल्याण और मार्गदर्शन के लिए अपने अवतार पैग़म्बर और रसूल भेजे। यह सिलसिला हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर समाप्त कर दिया गया। स्वामी विवेकानन्द और गुरुनानक सरीखे महानुभावों ने भी पैग़म्बरी और ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया है। वरिष्ठ विद्वानों में पं. सुन्दर लाल, श्री बलराम सिंह परिहार, डा. वेद प्रकाश उपाध्याय, डा. पी.एच. चैबे, डा. रमेश प्रसाद गर्ग, पं. दुर्गा शंकर सत्यार्थी आदि ने ‘‘अवतार’’ का अर्थ ईश्वर द्वारा मानव-कल्याण के लिए अपने पैग़म्बर और दूत भेजा जाना बताया है। प्राणनाथी सम्प्रदाय के प्रसिद्ध चिंतक श्री कश्मीरी लाल भगत ने भी इस तथ्य का स्पष्ट समर्थन किया है।
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व सूचना हमें बाइबिल, तौरेत और अन्य धर्मग्रन्थों में मिलती है, यहाँ तक कि भारतीय धर्मग्रन्थों में भी आप (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणियाँ मिलती हैं। हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म की पुस्तकों में इस प्रकार की पूर्व-सूचनाएं मिलती हैं। इस पुस्तिका में सबको एकत्र करके पेश करने का प्रयास किया गया है।
पैग़म्बरों और अवतारों के भेजे जाने का विशिष्ट औचित्य होता है। लोगों में अधर्म की प्रवृत्ति पैदा हो जाने, धर्म के वास्तविक स्वरूप से हट जाने और मूल धर्म में मिलावट हो जाने के कारण पैग़म्बर एवं अवतार भेजे गए, जिन्होंने धर्म को फिर से मौलिक रूप में पेश किया और एक ईश्वर की ओर लोगों को बुलाया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) उस समय भेजे गए, जब हज़रत ईसा मसीह (अलैहि.) को आए हुए पाँच सौ से अधिक वर्ष बीत चुके थे। नबियों (अलैहि.) की शिक्षाएँ नष्ट अथवा विकृत हो चुकी थीं, सनातन धर्म पर अधार्मिकता छा गई थी, ईशभय और ईशपरायणता समाप्त हो चुकी थी। इनसान अपने पैदा करनेवाले को भूला हुआ था। उसने अनेक ईश्वर बना डाले और अपनी दशा इतनी पतित कर डाली कि पेड़, पहाड़, आग, पानी, हवा, धरती, चांद, सूरज आदि चीज़ों को पूजने में लिप्त हो गया।
इन विकट और विषम परिस्थितियों में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का आगमन हुआ। आप (सल्ल.) ने अल्लाह के पैग़म्बर के रूप में महान और अनुपम सद्क्रान्ति कर दिखाई। आप (सल्ल.) कोई नया धर्म लेकर नहीं आए थे, बल्कि मानव जाति के आरंभ से चले आ रहे सनातन धर्म (इस्लाम) में आई ख़राबियों और विकृतियों को दूर कर उसे मौलिक रूप में पेश किया। आप (सल्ल.) ने इनसानों को उनकी अस्ल हैसियत बताई और उनकी मिथ्या धारणाओं का उन्मूलन किया। आप (सल्ल.) ने बताया कि इनसान का ईश्वर केवल एक है, वह निराकार है। इनसान को उसी की ही दासता अपनानी चाहिए, उसी की ही इबादत करनी चाहिए। यदि वह इस धारणा और भक्ति-कर्म का इनकार करता है, तो अपने को ग़लत जगह खड़ा कर लेता है, जिसके कारण उसके क़दम ग़लत दिशा में उठने लगते हैं। ऐसे में भला उसकी जीवन-यात्रा कैसे सफल हो सकती है?
जीवन की सुगम, सार्थक, सफल और फलदाई यात्रा के लिए अल्लाह के अंतिम पैग़म्बर और दूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) द्वारा पेश की गई शिक्षाओं को अपनाया जाए एवं आप (सल्ल.) के बताए मार्ग पर चला जाए, तभी पारलौकिक जीवन को भी सफल बनाया जा सकता है। अब यह सच्चाई छिपी नहीं रही कि भारतीय धर्मग्रन्थों में जिस अवतार (पैग़म्बर) के आने की पूर्व-सूचना दी गई थी, वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। यह पुस्तिका सच्चाई उजागर करने की दिशा में एक प्रयास है। इसका उद्देश्य सत्य को समझाना है। अतः इसमें वर्णित तथ्यों के सिलसिले में कोई न्यूनता और त्रुटि रह गई हो, तो हमें अवगत कराने का कष्ट करें। अल्लाह हमारी कोशिशों को क़बूल फ़रमाए, आमीन।
डा. एम. ए. श्रीवास्तव
स्थान - नई दिल्ली
दिनांक-12 सितंबर 1997
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हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और भारतीय धर्मग्रन्थ
सत्य हमेशा स्पष्ट होता है। उसके लिए किसी तरह की दलील की ज़रूरत नहीं होती। यह बात और है कि हम उसे न समझ पाएँ या कुछ लोग हमें इससे दूर रखने का कुप्रयास करें। अब यह बात छिपी नहीं रही कि वेदों, उपनिषदों और पुराणों में इस दृष्टि के अन्तिम पैग़म्बर (संदेष्टा) हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की भविष्यवाणियां की गई हैं। मानवतावादी सत्य गवेषी विद्वानों ने ऐसे अकाट्स प्रमाण पेश कर दिए, जिससे सत्य खुलकर सामने आ गया है।
वेदों में जिस उष्ट्रारोही (ऊँट की सवारी करनेवाले) महापुरुष के आने की भविष्यवाणी की गई है, वे मुहम्मद (सल्ल.) ही है। वेदों के अनुसार उष्ट्रारोही का नाम ‘नराशंस’ होगा। ‘नराशंस’ का अरबी अनुवाद ‘मुहम्मद’ होता है। ‘नराशंस’ के बारे में वर्णित समस्त क्रियाकलाप हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आचरणों और व्यवहारों से आश्चर्यजनक साम्यता रखते हैं। पुराणों और उपनिषदों में कल्कि अवतार की चर्चा है, जो हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही सिद्ध होते हैं। कल्कि का व्यक्तित्व और चारित्रिक विशेषताएं अंतिम पैग़म्बर (सल्ल.) के जीवन-चरित्र को पूरी तरह निरूपित करती हैं। यही नहीं उपनिषदों में साफ़ तौर से हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का नाम आया है और उन्हें अल्लाह का रसूल (संदेशवाहक) बताया गया है। पुराण और उपनिषदों में यह भी वर्णित है कि ईश्वर एक है। उसका कोई भागीदार नहीं है। इनमें ‘अल्लाह’ शब्द का उल्लेख कई बार किया गया है। बौद्धों और जैनियों के धर्मग्रन्थों में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के बारे में भविष्यवाणियां की गई हैं।
इन सच्चाइयों के आलोक में मानवमात्र को एक सूत्र में बांधने और मानव एकता एवं अखण्डता को मज़बूत करने के लिए सार्थक प्रयास हो सकते हैं। यह समय की मांग भी है। वैमनस्यता और साम्प्रदायिकता के इस आत्मघाती दौर में ये सच्चाइयां मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। भाई-भाई को गले मिलवा सकती हैं और एक ऐसे नैतिक और सद् समाज का निर्माण कर सकती है, जहां हिंसा, शोषण, दमन और नफ़रत लेशमात्र भी न हो। इन्हीं उद्देश्यों को लेकर सभी सच्चाईयों को एक साथ आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। इस कोशिश में हमें कितनी सफलता मिली यह आप ही बताएंगे। उम्मीद है कि ये सच्चाइयाँ दिल की गहराइयों में उतरकर हम सभी को मानव कलयाण के लिए प्रेरित करेंगी। प्रस्तुत पुस्तिका में डा. वेद प्रकाश उपाध्याय के शोध ग्रन्थों ‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ और ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के अलावा अन्य स्रोतों से प्राप्त तथ्यों एवं सामग्रियों का समावेश किया गया है।

मुहम्मद (सल्ल.) और वेद
वेदों में नराशंस या मुहम्मद के आने की भविष्यवाणी कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है, बल्कि धार्मिक ग्रन्थों में ईशदूतों (पैग़म्बरों) के आगमन की पूर्व सूचना मिलती रही है। यह ज़रूर चमत्कारिक बात है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आने की भविष्यवाणी जितनी अधिक धार्मिक ग्रन्थों में की गई है उतनी किसी अन्य पैग़म्बर के बारे में नहीं की गई। ईसाइयों, यहूदियों और बौद्धों के धार्मिक ग्रन्थों में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के अंतिम ईशदूत के रूप में आगमन की भविष्यवाणियाँ की गई हैं।
वेदों का ‘नराशंस’ शब्द ‘नर’ और ‘आशंस’ दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘नर’ का अर्थ मनुष्य होता है और ‘आशंस’ का अर्थ ‘प्रशंसित’। सायण ने ‘नरशंस’ का अर्थ ‘मनुष्यों द्वारा प्रशंसित’ बताया है(नराशंस: यो नरै: प्रशस्यते। (सायण भाष्य, ऋग्वेद संहिता, 5/5/2)। मूल मंत्र इस प्रकार है - ‘‘नराशंस: सुषूदतीमं यज्ञामदाभ्यः । कविर्हि मधुहस्त्य।’’ ‘‘नराशंस’’ शब्द का अर्थ स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी मनुष्यों द्वारा प्रशंसित बताया है) (ऋग्वेद हिन्दी भाष्य, पृ. 25, प्रकाशक: सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा)। यह शब्द कर्मधारय समास है, जिसका विच्छेद ‘नरश्चासौ आशंसः’ अर्थात प्रशंसित मनुष्य होगा। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय कहते हैं कि ‘‘इसी लिए इस शब्द से किसी देवता को भी न समझना चाहिए। ‘नराशंस’ शब्द स्वतः ही इस बात को स्पष्ट है। यदि कोई ‘नर’ शब्द को देववाचक मानें तो उसके समाधान में इतना स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि ‘नर’ शब्द न तो देवता का पर्यायवाची शब्द ही है और न तो देवयोनियों के अंतर्गत कोई विशेष जाति।’’ (‘नराशंस और अंतिम ऋषि’, पृ. 5।)।
‘नर’ शब्द का अर्थ मनुष्य होता है, क्योंकि ‘नर’ शब्द मनुष्य के पर्यायवाची शब्दों में से एक है। ‘नराशंस’ की तरह ‘मुहम्मद’ शब्द का अर्थ ‘प्रशंसित’ होता है। ‘मुहम्मद’ शब्द ‘हम्द’ धातु से बना है, जिसका अर्थ प्रशंसा करना होता है। ऋग्वेद में ‘कीरि’ नाम आया है, जिसका अर्थ है ईश्वर प्रशंसक। अहमद शब्द का भी यही अर्थ है। अहमद, मुहम्मद साहब का एक नाम है। (पं. रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी ‘कान्ति’ के 28 अक्तूबर-4 नवम्बर 1990 के अंक में। ऋग्वेद का मूल श्लोक यह है-यो रघ्रस्योचोदिताय: कृशस्य यो ब्रह्मणो नाधमानस्य कीरेः।।) (ऋग्वेद, 2/12/6)
वेदों में ऋग्वेद सबसे पुराना है। उसमें ‘नराशंस’ शब्द से शुरू होनेवाले आठ मंत्र हैं। ऋग्वेद के प्रथम मंडल, 13वें सूक्त, तीसरे मंत्र और 18वें सूक्त, नवें मंत्रा तथा 106वें सूक्त, चैथे मंत्रा में ‘नरांशस’ का वर्णन आया है। ऋग्वेद के द्वितीय मंडल के तीसरे सूक्त, दूसरे मंत्र, 5वें मंडल के पांचवें सूक्त, दूसरे मंत्र, सातवें मंडल के दूसरे सूक्त, दूसरे मेंत्रा, 10वें, मंडल के 64वें सूक्त, तीसरे मंत्र और 142वें सूक्त, दूसरे मंत्र में भी ‘नराशंस’ विषयक वर्णन आए हैं। सामवेद संहिता के 1319वें मंत्र में और वाजसनेयी संहिता के 28वें अध्याय के 27वें मंत्र में भी ‘नराशंस’ के बारे में ज़िक्र आया है। तैत्तिरीय आरण्यक और शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थों के अलावा यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी ‘नराशंस’ का उल्लेख किया गया है।

‘नराशंस’ की चारित्रिक विशेषताओं की हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से साम्यता
वेदों में ‘नराशंस’ की स्तुति किए जाने का उल्लेख है। वैसे ऋग्वेद काल या कृतयुग में यज्ञों के दौरान ‘नराशंस’ का आह्नान किया जाता था। इसके लिए ‘प्रिय’ शब्द का इस्तेमाल होता था। ‘नराशंस’ की चारित्रिक विशेषताओं की हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से तुलना इस प्रकार है-
1. वाणी की मधुरता
ऋग्वेद में ‘नराशंस’ को ‘मधुजिह्न’ कहा गया है, (नराशंस मिहप्रियम स्मिन्यज्ञ उप ह्नये। मधुजिह्नं हविष्कृतम्।) (ऋग्वेद संहिता 1/13/3) यानी उसमें वाणी की मधुरता होगी। मधुर-भाषिता उसके व्यक्तित्व की ख़ास पहचान होगी। सभी जानते हैं कि मुहम्मद (सल्ल.) की वाणी में काफ़ी मिठास थी।
2. अप्रत्यक्ष ज्ञान रखनेवाला
‘नराशंस’ को अप्रत्यक्ष ज्ञान रखनेवाला बताया गया है। इस ज्ञान को रखनेवाला कवि भी कहलाता है। ऋग्वेद संहिता में ‘नराशंस’ को कवि बताया गया है (नराशंस: सुदूषूदतीमं यज्ञमदाम्य:। कविर्हि मधुहास्त्यः।) (ऋग्वेद संहिता 5/5/2)। मुहम्मद (सल्ल.) को अल्लाह ने कुछ अवसरों पर परोक्ष बातों की जानकारी प्रदान की थी अतः पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) ने रोमियों और ईरानियों के युद्ध में रूमियों की हार और नव वर्ष के अंदर ही रूमियों की होनेवाली विजय की पूर्व जानकारी दी थी। नैनवा की लड़ाई में रूमियों की जीत 657 ई. में हुई थी। पवित्र कुरआन की सूरा रूम इसी से सम्बंधित है। रूमियों की पराजय के पश्चात पुनः विजय प्राप्त कर लेने का उल्लेख आया है। इनके साथ ही निकट भविष्य में इनकार करनेवालों पर मुसलमानों के विजयी होने की भविष्यवाणी की गई है।
वे ईश्वर को सबसे अधिक प्यारे और उसे जाननेवाले थे। वे नबी थे। ‘नबी’ शब्द ‘नबा’ धातु से बना हुआ शब्द है, जिसका अर्थ संदेश देनेवाला होता है। आप (सल्ल.) ईश्वर के सन्देशवाहक थे। आचार्य रजनीश के शब्दों में ‘‘आप ईश्वर तक पहुंचने की ‘बांसुरी’ हैं जिसमें फूंक किसी और की है।’’
3. सुन्दर कान्ति के धनी
‘नराशंस’ को सुन्दर कान्तिवाला बताया गया है। इस विशेषता का उल्लेख करते हुए ऋग्वेद में ‘स्वर्चि’ शब्द आया है (नराशंस: प्रति धामान्य××ान तिस्रो दिव: प्रति महा स्वर्चिः।।) (ऋग्वेद संहिता 2/3/2)।
‘स्वर्चि’ शब्द का विच्छेद है ‘शोभना अर्यिर्यस्य सः’ यानी सुन्दर दीप्ति या कान्ति से युक्त। इस शब्द का तात्पर्य यह है कि इतने सुन्दर स्वरूप का व्यक्ति जिसके चेहरे से रौशनी-सी निकलती हो। ऋग्वेद में ही बता दिया गया है कि वह अपने महत्व से घर-घर को प्रकाशित करेगा। (नराशंसःप्रतिधामान्यज्‍जन तिस्रो दिव: प्रति मह्ना स्वर्चिः।।) (ऋग्वेद संहिता 2/3/2) स्पष्ट है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने घर-घर में ज्ञान की ज्योति जलाई, अज्ञान को खत्म कर दिया और अंधकार में भटक रहे लोगों को नई रौशनी दी।
ऋग्वेद में ही कहा गया है कि ‘अहमिद्धि पितुष्परि मेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।।’
सामवेद में भी है: ‘आहमिधि पितुः परिमेधामृतस्य जग्रभ। अहं सूर्य इवाजनि।। (सामवेद प्र. 2 द. 6 मं. 8) अर्थात, अहमद (मुहम्मद) ने अपने रब से हिकमत से भरी जीवन व्यवस्था को हासिल किया। मैं सूरज की तरह रौशन हो रहा हूं।’
मुहम्मद साहब इतने सुन्दर थे कि लोग स्वतः आपकी तरफ खिंच आते थे। इस संदर्भ में रेवरेंड बासवर्थ स्मिथ ‘मुहम्मद एण्ड मुहम्मेदनिज़्म’ में लिखा है कि मुहम्मद साहब साहब के विरोधी भी उनकी आकर्षण शक्ति तथा उनकी गरिमा से प्रभावित होकर उनका सम्मान करने को बाध्य हो जाते थे। तमाम बाधाओं और विरोध के बावजूद मुहम्मद साहब घर-घर में ज्ञान की ज्योति प्रकाशित करते रहे।’’
4. पापों का निवारक
ऋग्वेद में नराशंस को ‘पापों से लोगों को हटानेवाला’ बताया गया है। (नराशंस वाजिनं वाजयन्निह क्षयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे - ऋग्वेद, 1/106/4) यह कहने की ज़रूरत ही नहीं है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की समस्त शिक्षाएं और आप पर अवतरित क़ुरआन समग्र जीवन को पापों से उबार देता है। यह सन्मार्ग का आईना (दर्पण) है जिसे ‘देखकर’ और उसपर अमल करके व्यक्ति को तमाम पापों से छूटकारा मिल जाता है। उसकी दुनियावी और मरने के बाद की ज़िन्दगी खुशहाल हो जाती है। इस्लाम जुआ, शराब और अन्य नशीले पदार्थों के सेवन से लोगों को रोकता है तथा अवैध कमाई से प्राप्त धन को खाने, ब्याज लेने और किसी का हक़ मारने को निषिद्ध ठहराता है। वह अत्याचार, दमन और शोषण से मुक्त समाज की स्थापना करता है।
5. पत्नियों की साम्यता
‘नराशंस’ के पास 12 पत्नियां होंगी, इस बात की पुष्टि भी अथर्ववेद के उसी मंत्र से होती है जिस मंत्र से होती है जिस मंत्र में उसके द्वारा सवारी के रूप में ऊँट के प्रयोग करने की बात का उल्लेख है। यह मंत्र इस प्रकार है-
उष्ट्रा यस्य प्रवाहिणो वधूमन्तों द्विर्दश।
वर्ष्‍मा रथस्य नि जिहीडते दिव ईषमाण उपस्पृशः।
-अथर्ववेद कुन्ताप सूक्त 20/127/2
अर्थात, जिसकी सवारी में दो खूबसूरत ऊंटनियां हैं। या तो अपनी बारह पत्नियों समेत ऊंटों पर सवारी करता है उकसी मान-प्रतिष्ठा की ऊंचाई अपनी तेज़ रफ्तार से आसमान को छूकर नीचे उतरती है।
इस मंत्र के अनुरूप हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की बारह पत्नियां थीं।
आप (सल्ल.) की पत्नियों के नाम क्रम से इस प्रकार हैं - 1. हज़रत ख़दीजा (रज़ि), 2. हज़रत सौदा (रजि.), 3. हज़रत आइशा (रजि.), 4. हज़रत हफ़्सा (रजि.), 5. हज़रत उम्मे सलमा (सल्ल.), 6. हज़रत उम्मे हबीब (रजि.), 7. हज़रत ज़ैनब बिन्त जहश (रजि.), 8. हज़रत ज़ैनब बिन्त खुज़ैमा (रजि.), 9. हज़रत जुवैरिया (रजि.), 10. सफ़ीया (रजि.), 11. हज़रत रैहाना (रजि.), और 12. हज़रत मैमूना (रजि.) (अल्लामा इब्ने ज़री की किताब में यही क्रम है।)
उल्लेखनीय है कि और किसी भी धार्मिक व्यक्ति की बारह पत्नियां नहीं थीं। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में कुछ महापुरुषों के पास सैकड़ों पत्नियां होने का विवरण होने के कारण मिलता है।
6. स्थानगत साम्यता
अथर्ववेद के उपर्युक्त मंत्र में नराशंस द्वारा सवारी के रूप में ऊंटों के उपयोग की जो बात कही गई है, उससे नराशंस की पहचान के साथ उसके आगमन के स्थान का भी बोध होता है। ऊंट की सवारी का अर्थ यह हुआ कि नराशंस जिस स्थान में पैदा होगा वहां ऊंटों की प्रचुरता होगी। ऊंट रेगिस्तानी क्षेत्रा में अधिक पाए जाते हैं। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म अरब के रेगिस्तान क्षेत्रा में हुआ।
7. अन्य साम्यताएं
अथर्ववेद में अन्योक्ति अलंकार के माध्यम से नराशंस के बारे में पहचान की कतिपय बातें भी बताई गई हैं।
कुन्ताप सूक्त में है-
इदं जना उप श्रुत नराशंस स्तविष्यते।
इसका अर्थ बताते हुए पं. क्षेम करण दास त्रिवेदी लिखते हैं-‘‘हे मनुष्यो! यह आदर से सुनो कि मनुष्यों में प्रशंसावाला पुरुष बड़ाई किया जाएगा।’’ (अथर्ववेद हिन्दी भाष्य, पृ. 1401, सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, नई दिल्ली।)
एक अन्य मंत्र में कहा गया है-
एष इषाय मामहे शतं निष्कान् दश स्रजः।
त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्रा दश गोनाम्।। (अथर्ववेद 20, 127, 3)
अर्थात, ईश्वर मामहे ऋषि को सौ सोने के सिक्के देगा, दस हज़ार गायें देगा, तीन सौ अरबी घोड़े देगा और दस हार।
यहां मामहे ऋषि से मतलब मुहम्मद (सल्ल.) से है। आप (सल्ल.) ईश्वर द्वारा सौ स्वर्ण मुद्राएं देने का तात्पर्य ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति से है जो रत्नवत महत्व के हों। मुहम्मद (सल्ल.) जो शिक्षाएं लोगों को देते थे उनकी सुरक्षा का कार्य सौ व्यक्ति करते थे। ये अस्हाबे सुफ़्फ़ः कहलाते थे। ये लोगों को शिक्षाओं की जानकारी भी देते थे और शिक्षाओं की रक्षा भी करते थे।
इसी प्रकार दस हज़ार गो प्रदान किए जाने का अर्थ ‘अच्छे व्यक्ति दिए जाने से है। ‘गो’ अलंकारिक शब्द है, जो साधारणतया अच्छे व्यक्ति के अर्थ में प्रयुक्त होता है। मुहम्मद (सल्ल.) की शिक्षाओं के अनुयायियों की संख्या आपके जीवन काल के अंतिम चरण में दस हज़ार थी। मक्का को जीतने के लिए मदीना से जाते समय आपके सहायकों की संख्या दस हज़ार थी। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के दस हज़ार अनुयायी जब मक्का पहुंचे तो वहां न किसी प्रकार का युद्ध हुआ न ही किसी अनुयायी को नष्ट किया, इसी कारण से उन दस हज़ार लोगों को गो कहा गया।
नराशंस को तीन सौ अर्वन की प्राप्ति का अर्थ ऐसे वीर योद्धाओं की प्राप्ति है जो घोड़े की तरह तेज़ हों। ‘अर्वन’ शब्द का शाब्दिक अर्थ घोड़ा होता है। यह भी गो की भांति अलंकारिक शब्द है। ब्रद की लड़ाई में मुहम्मद (सल्ल.) के साथियों (सहाबा) की संख्या तीन सौ थी।
नराशंस को दस स्रजः या गले का हार दिए जाने से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति हैं जो गले के हार के समान हों और नराशंस का प्रिय हों। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के दस ऐसे व्यक्ति थे, जो उनपर अपने प्राणों को भी समर्पित करने को तैयार रहते थे। वे गले के हार की तरह मुहम्मद (सल्ल.) के चारों तरफ़ हमेशा रहते थे। ये दसों व्यक्ति अशरः मुबश्शरः कहे जाते हैं। ये हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के वे साथी (सहाबी) हैं, जिन्हें जन्नत की खुश्खबरी दी गई।
इनके नाम हैं-अबूबक्र (रजि.), उमर (रजि.), उसमान बिन अफ़फ़ान (रजि.), तल्हा (रजि.), अली (रजि.), सअद बिन अबी वक्‍कास (रजि.), सईद बिन ज़ैद (रजि.), अब्दुर्रहमान बिन औफ़ (रजि.), अबू उबैदा बिन जर्राह (रजि.) और ज़ुबैर (रजि.)।
अथर्ववेद के एक मंत्र में कहा गया है कि ‘ऐ लोगों, यह (खुशख़बरी) ध्यानपूर्वक सुनो, नराशंस की प्रशंसा की जाएगी। साठ हज़ार नब्बे दुश्मनों में इस हिजरत करनेवाले, अमल फैलानेवाले को हम (सुरक्षा) में लेते हैं। ऋग्वेद के एक मंत्र में भी मामहे ऋषि के दस हज़ार साथियों (सहाबा) का ज़िक्र आया है। मंत्र इस प्रकार है-
अनस्वन्ता सतपतिर्मामहे मे गावा चेतिष्ठो असुरो मघोनः।
त्रौवृष्णो अग्ने दशभिः सहस्रैर्वैश्वानरः त्रयरुणाश्चिकेत।।
(ऋग्वेद म. 5, सू. 27, मंत्र 1)
अर्थात, हक़परस्त, अत्यन्त विवेकशील, शक्तिशाली, दानी मामहे ऋषि ने कलाम (वाणी) के साथ मुझे सुशोभित किया। सर्वशक्तिमान, सब खूबियां रखनेवाला, सारे संसार के लिए ‘कृपामय’ दस हज़ार सहयोगियों (सहाबा) के साथ मशहूर हो गया।
मामहे ऋषि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी मामहे ऋषि को मुहम्मद (सल्ल.) ही माना है।

पुराणों के प्रमाण
भविष्य पुराण और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)
केवल वेद ही नहीं बल्कि पुराणों में भी मुहम्मद साहब का कार्यस्थल रेगिस्तानी क्षेत्रा में होने का उल्लेख आता है। भविष्य पुराण में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ‘एक दूसरे देश में एक आचार्य अपने मित्रों के साथ आएंगे। उनका नाम महामद होगा। वे रेगिस्तानी क्षेत्र में आएंगे।(एतस्मिन्नन्तिरे म्लेच्छ आचाय्र्येण समन्वितः।। महामद इति ख्यातः शिष्यशाखा समन्वितः।।)’ इस अध्याय का श्लोक 6,7,8 भी मुहम्मद साहब के विषय में है। पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) के जन्म स्थान सहित अन्य साम्यताएं कल्कि अवतार से भी मिलती हैं, जिसका वर्णन कल्कि पुराण में है। इसकी चर्चा बाद में की जाएगी।
यहां यह उल्लेख कर देना उचित होगा कि भविष्य पुराण में कई नबियों (ईशदूतों) की जीवन गाथा है। इस्लाम पर भी विस्तृत अध्याय है। इस पुराण में एकदम सटीक तौर पर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के विषय की बातें आती हैं। इसमें जहां महामद आचार्य के नाम की मुहम्मद शब्द से निकटता है, वहीं पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) की पहचान की अन्य बातें बिल्कुल सत्य उतरती हैं। इनमें ज़रा भी व्याख्या की ज़रूरत नहीं है। भविष्य पुराण के अनुसार, शालिवाहन (सात वाहन) वंशी राजा भोज दिग्विजय करता हुआ समुद्र पार (अरब) पहुंचेगा। इसी दौरान (उच्च कोटि के) आचार्य शिष्यों से घिरे हुए महामद (मुहम्मद सल्ल.) नाम से विख्यात आचार्य को देखेगा। (प्रतिसर्ग पर्व 3, अध्याय 3, खंड 3, कलियुगीतिहास समुच्चय) भविष्य पुराण में कहा गया है-
लिंड्गच्छेदी शिखाहीनः श्मश्रुधारी स दूषकः।
उच्चालापी सर्वभक्षी भविष्यति जनो मम। 25।
विना कौलं च पश्वस्तेषां भक्ष्या मता मम।
मुसलेनैव संस्कारः कुशैरिव भविष्यति। 26।।
तस्मान्मुसलवन्तो हि जातयो धर्मदूषकाः।
इति पैशाचधर्मश्च भविष्यति मया कृतः । 27 ।।
(भ.पु. पर्व 3, खण्ड 3, अध्याय 1, श्लोक 25, 26, 27)
इन श्लोकों का भावार्थ इस प्रकार है-‘हमार लोगों का ख़तना होगा, वे शिखाहीन होंगे, वे दाढ़ी रखेंगे, ऊंचे स्वर में आलाप करेंगे यानी अज़ान देंगे। शाकाहारी मांसाहारी (दोनों) होंगे, किन्तु उनके लिए बिना कौल यान मंत्र से पवित्र किए बिना कोई पशु भक्ष्य (खाने) योग्य नहीं होगा (वे हलाल मांस खाएंगे)। इसक प्रकार हमारे मत के अनुसार हमारे अनुयायियों का मुस्लिम संस्कार होगा। उन्हीं से मुसलवन्त यानी निष्ठावानों का धर्म फैलेगा और ऐसा मेरे कहने से पैशाच धर्म का अंत होगा।’
भविष्य पुराण की इन भविष्यवाणियों की हर चीज़ इतनी स्पष्ट है कि ये स्वतः ही हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) पर खरी उतरती हैं। अतः आप (सल्ल.) की अंतिम ऋषि (पैग़म्बर) के रूप में पहचान भी स्पष्ट हो जाती है। ऐसी भी शंका नहीं है कि इन पुराणों की रचना इस्लाम के आगमन के बाद हुई है। वेद और इस तरह के कुछ पुराण इस्लाम के काफ़ी पहले के हैं।

संग्राम पुराण की पूर्व-सूचना
संग्राम पुराण की गणना पुराणों में की जाती है। इस पुराण में भी ईश्वर के अंतिम ईशदूत और पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की पूर्व-सूचना मिलती है। पंडित धर्मवीर उपाध्याय ने अपनी मशहूर किताब ‘‘अंतिम ईशवरदूत’’ (यह किताब 1927 ई. में नेशनल प्रिंटिंग प्रेस, दरियागंज, दिल्ली से सर्वप्रथम प्रकाशित हुई थी।) में लिखा हैः ‘‘कागभुसुन्डी और गरुड़ दोनों राम की सेवा में दीर्घ अवधि तक रहे। वे उनके उपदेशों को न केवल सुनते ही रहे, बल्कि लोगों को सुनाते भी रहे। इन उपदेशों की चर्चा तुलसीदास जी ने ‘संग्राम पुराण’ के अपने अनुवाद में की है, जिसमें शंकर जी ने अपने पुत्र षण्मुख को आनेवाले धर्म और अवतार (ईशदूत) के विषय में पूर्व-सूचना दी है।’’ अनुवाद इस प्रकार है-
यहां न पक्षपात कछु राखहुं।
वेद, पुराण, संत मत भाखहुं।।
संवत विक्रम दोऊ अनड़गा।
महकोक नस चतुर्पतड़गा।।
राजनीति भव प्रीति दिखावै।
आपन मत सबका समझावै।।
सुरन चतुसुदर सतचारी।
तिनको वंश भयो अति भारी।।
तब तक सुन्दर मद्दिकोया।
बिना महामद पार न होया।।
तबसे मानहु जन्तु भिखारी।
समरथ नाम एहि व्रतधारी।।
हर सुन्दर निर्माण न होई।
तुलसी वचन सत्य सच होई।।
(संग्राम पुराण, स्कन्द, 12, कांड 6: पद्यानुवाद, गोस्वामी तुलसीदास)
पंडित धर्मवीर उपाध्याय ने इनका भावानुवाद इस प्रकार किया है- ‘‘(तुलसीदास जी कहते हैं: ) मैंने यहां किसी प्रकार का पक्षपात न करते हुए संतों, वेदों और पुराणों के मत को कहा है। सातवीं विक्रमी सदी में चारों सूर्यों के प्रकाश के साथ वह पैदा होगा। राज करने में जैसी परिस्थितियां हों, प्रेम से या सख़्ती से वह अपना मत सभी को समझा सकेगा। उसके साथ चार देवता (प्रमुख सहयोगी) होंगे, जिनकी सहायता से उनके अनुयायियों की संख्या काफ़ी हो जाएगी। जब तक सुन्दर वाणी (कुरआन) धरती पर रहेगी (उसके) और महामद (हज़रत मुहम्मद सल्ल.) के बिना मुक्ति (निजात) नहीं मिलेगी। इनसान, भिखारी, कीड़े-मकोड़े और जानवर इस व्रतधारी का नाम लेते ही ईश्वर के भक्त हो जाएंगे। फिर कोई उसकी तरह का पैदा न होगा (अर्थात्) कोई रसूल नहीं आएगा), तुलसीदास जी ऐसा कहते हैं कि उनका वचन सिद्ध होगा।’’ (कोष्ठक में दिए गए शब्द व्याख्या के लिए लिखे हैं।। यहां एक और मंतव्य स्पष्ट करना प्रासंगिक होगा कि संग्राम पुराण की गणना भले ही अर्वाचीन पुराणों में की जाती हो, लेकिन इसका आधार प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथ ही हैं, जैसा कि अन्य पुराणों व ग्रंथों एवं विचारों के आधार पर अर्थात भूतकालिक प्रमाणों की रौशनी में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के आगमन की सूचना दी गई है। अतः पुराण के अर्वाचीन अथवा प्राचीन होने से संबंधित तथ्य के निरूपण नहीं पैदा होता।)

'कल्कि अवतार और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)'
संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने अपने एक शोधपत्र में मुहम्मद (सल्ल.) को कल्कि अवतार बताया है। कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) की विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन करके डा. उपाध्याय ने यह सिद्ध कर दिया है कि कल्कि का अवतार हो चुका है और वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। इस शोधपत्र की भूमिका में वे लिखते हैं-
‘‘वैज्ञानिक अणु विस्पफोटों से जो सत्यानाश संभव है, उसका निराकरण धार्मिक एकता सम्बंधी विचारों से हो जाता है। जल में रहकर मगर से बैर उचित नहीं, इस कारण मैंने वह शोध किया जो धार्मिक एकता का आधार है। राष्ट्रीय एकता के समर्थकों द्वारा इस शोधपत्र पर कोई आपत्ति नहीं होगी। आपत्ति होगी तो कूपमण्डूक लोगों को, यदि वे कूप के बाहर निकलकर संसार को देखें तो कूप को ही संसार मानने की उनकी भावना हीन हो जाएगी।’’ .... ‘‘मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस शोध पुस्तक के अवलोकन से भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि अखिल भूमण्डल में एकता की लहर दौड़ पड़ेगी और धर्म के नाम पर होनेवाले कलह शांत होंगे।’’
यहां पर इस शोधपत्र की ख़ास बातें और अन्य स्रोतों से प्राप्त तद् विषयक सामग्री पेश की जा रही है।
अवतार का तात्पर्य
अवतार शब्द ‘अव’ उपसर्गपूर्वक ‘तृ’ धातु में ‘घज्‍ज्' प्रत्यय लगाकर बना है। इसका अर्थ पृथ्वी पर आना है। ‘ईश्वर का अवतार’ शब्द का अर्थ है- सबको संदेश देनेवाले महात्मा का पृथ्वी पर जन्म लेना। कल्कि अवतार को ईश्वर का अन्तिम अवतार बताया गया है। ‘ईश्वर का अवतार’ शब्द में ‘का’ शब्द सम्बंधकारक चिन्ह है, अतः ज़ाहिर है कि ईश्वर से संबद्ध व्यक्ति का अवतीर्ण होना। ईश्वर से संबद्ध कौन है? उसका भक्त ही सबसे संबद्ध हो सकता है। ऋग्वेद में ऐसे व्यक्ति को ‘कीरि’ कहा गया है। हिन्दी में ‘कीरि’ शब्द का अर्थ ‘ईश्वर का प्रशंसक’ और अरबी में ‘अहमद’ होता है। लेकिन क्या ईश्वर का प्रशंसक ‘कीरि’ या ‘अहमद’ एक नहीं हो सकता। हर देश और समय के लिए अलग-अलग अवतार हुए हैं क्योंकि एक अवतार से पूरे विश्व का कल्याण नहीं हो सकता था। कुरआन में है कि हर भाग में रसूल (संदेशवाहक) भेजे गए। अंतिम अवतार कल्कि की अलग विशेषता है। वे किसी एक हिस्से के लिए नहीं वरन् समय विश्व के लिए भेजे गए।
जब लोग वास्तविक धर्म से विमुख होकर अधर्म की राह पकड़ लेते हैं या धर्म को अपने स्वार्थ के लिए तोड़-मरोड़ देते हैं, तो उन्हें फिर सही मार्ग दिखाने के लिए ईश्वर अपने अवतार या पैग़म्बर भेजता है।

अंतिम अवतार के आने का लक्षण
कल्कि के अवतरित होने का समय उस माहौल में बताया गया है, जबकि बर्बरता का साम्राज्य होगा। लोगों में हिंसा व अराजकता का बोलबाला होगा। पेड़ों का न फलना, न फूलना। अगर फल-फूल आएं भी तो बहुत कम। दूसरों को मारकर उनका धन लूट लेना और लड़कियों को पैदा होते ही पृथ्वी में गाड़ देना। एक ईश्वर को छोड़कर कई देवी-देवताओं की पूजा, पेड़-पौधों एवं पत्थरों को भगवान मानने की प्रवृत्ति, भलाई की आड़ में बुराई करने की प्रवृत्ति, असमानता आदि है। ऐसे ही नाजुक दौर में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए थे।
सातवीं शताब्दी के शुरू में रोमन और पर्सियन साम्राज्यों की जितनी बुरी अवस्था थी, उतनी शायद कभी नहीं हुई। बाइजेन्टाइन साम्राज्य के क्षीण हो जाने से सम्पूर्ण शासन नष्ट हो चुका था। पादरियों के दुष्कर्मों और दुष्टताओं के फलस्वरूप ईसाई धर्म बहुत गिर गया था। पारस्परिक संघर्षों और शत्रुता के कारण अफ़रा-तफ़री का आलम था। इस समय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) भेजे गए। इस्लाम धर्म रोमन साम्राज्य के संघार्षों से दूर था। इस धर्म के भाग्य में यही लिखा था कि यह तूफ़ान की तरह से सम्पूर्ण पृथ्वी पर छा जाएगा और अपने समक्ष बहुत-से साम्राज्यों, शासकों और प्रथाओं को इस तरह उड़ा देगा जैसे कि आंधी मिट्टी को उड़ा देती है। ('Apology for Mohammed' b Gofrey Higgins,2) इसी प्रकार सेल ने कुरआन के अनुवाद की प्रस्तावना में लिखा है-‘‘गिरजाघर के पादरियों ने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर डाले थे और शांति प्रेम एवं अच्छाइयां लुप्त हो गई थीं। वे मूल धर्म को भूल गए थे। धर्म के विषय में अपने तरह-तरह के विचार बनाए हुए परस्पर कलह करते रहते थे। इसी पृथ्वी में रोमन गिरजाघरों में बहुत-सी भ्रम की बातें धर्म के रूप में मानी जाने लगीं और मूर्ती-पूजा बहुत ही निर्लज्जता से की जाने लगी। (Translation of the Qur'an, by Gorage Sale, First Tranlation/Preface on pages 25/26)’’ इसके परिणामस्वरूप एक ईश्वर के स्थान पर तीन ईश्वर हो गए और मरयम को ईश्वर की मां समझा जाने लगा। अज्ञानता के इस दौर में अल्लाह ने अपना अंतिम रसूल भेजा।
दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि अंतिम अवतार उस समय होगा जबकि युद्धों में तलवार का इस्तेमाल होता होगा और घोड़ों की सवारी की जाती हो। भागवत पुराण में उल्लेख है कि ‘देवताओं द्वारा दिए गए वेगगामी घोड़े पर चढ़कर आठों ऐश्वर्यों और गुणों से युक्त जगत्पति तलवार से दुष्टों का दमन करेंगे। (अश्वमाशुगमारुह्य देवदत्तं जगत्पतिः। असिनासाधुदमनमष्टैश्वर्य गुणान्वितः।।) (भागवत् पुराण, 12 स्कंध, 2 अध्याय, 19वां श्लोक) तलवारों और घोड़ों का युग तो अब समाप्त हो चुका है। आज से लगभग चैदह सौ वर्ष पूर्व तलवारों और घोड़ों का प्रयोग होता था। उसके लगभग सौ वर्ष बाद से बारूद का निर्माण सोडा और कोयला मिलाकर होने लगा था। वर्तमान समय में तो घोड़ों और तलवारों का स्थान टैंकों और मिसाइलों आदि ने ले लिया है।’

कल्कि का अवतार-स्थान
कल्कि के अवतार का स्थान शम्भल ग्राम में होने का उल्लेख कल्कि एवं भागवत् पुराण में किया गया है। यहां पहले यह निश्चय करना आवश्यक है कि शम्भल ग्राम का नाम है या किसी ग्राम का विशलेषण। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय के मतानुसार ‘शम्भल’ किसी ग्राम का नाम नहीं हो सकता, क्योंकि यदि केवल किसी ग्राम विशेष को ‘शम्भल’ नाम दिया गया होता तो उसकी स्थिति भी बताई गई होती। भारत में खोजने पर यदि कोई ‘शम्भल’ नामक ग्राम लिखता है तो वहां आज से लगभग चौदह सौ वर्ष पहले कोई पुरुष ऐसा नहीं पैदा हुआ जो लोगों का उद्धारक हो। फिर अंतिम अवतार कोई खेल तो नहीं है कि अवतार हो जाए और समाज में ज़रा-सा परिवर्तन भी न हो, अतः ‘शम्भल’ शब्द को विशेषण मानकर उसकी व्युत्पत्ति पर विचार करना आवश्यक है।
(1) ‘शम्भल’ शब्द ‘शम्’ (शांत करना) धातु से बना है अर्थात, जिस स्थान में शान्ति मिले।
(2) सम् उप सर्गपूर्वक ‘वृ’ धातु में अप् प्रत्यय के संयोग से निष्पन्न शब्द ‘संवर’ हुआ। वबयोरभेदः और रलयोरभेदः के सिद्धांत से शम्भल शब्द की निष्पत्ति हुई, जिसका अर्थ हुआ ‘जो अपनी ओर लोगों को खींचता है या जिसके द्वारा किसी को चुना जाता है’।
(3) ‘शम्वर’ शब्द का निघण्टु (1/12/88) में उदकनामों के पाठ हैं। ‘र’ और ‘ल’ में अभेद होने के कारण शम्भल का अर्थ होगा जल का समीपवर्ती स्थान’। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 30)
इस प्रकार वह स्थान जिसके आसपास जल हो और वह स्थान अत्यंत आकर्षण एवं शांतिदायक हो, वही शम्भल होगा। अवतार की भूमि पवित्र होती है। ‘शम्भल’ का शाब्दिक अर्थ है- शांति का स्थान। मक्का को अरबी में ‘दारूल अमन’ कहा जाता है, जिसका अर्थ शांति का घर होता है। मक्का मुहम्मद (सल्ल.) का कार्यस्थल रहा है।

जन्म तिथि
कल्कि पुराण में अंतिम अवतार के जन्म का भी उल्लेख किया गया है। इस पुराण के द्वितीय अध्याय के श्लोक 15 में वर्णित है-
‘‘द्वादश्यां शुक्ल पक्षस्य, माधवे मासि माधवम्।
जातो ददृशतुः पुत्रं पितरौ ह्रष्टमानसौ।।
अर्थात ‘‘जिसके जन्म लेने से दुखी मानवता का कल्याण होगा, उसका जन्म मधुमास के शुक्ल पक्ष और रबी फसल में चंद्रमा की 12वीं तिथि को होगा।’’ एक अन्य श्लोक में है कि कल्कि शम्भल में विष्णुयश नामक पुरोहित के यहां जन्म लेंगे। (शम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः। भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।) (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, 2 अध्याय, 18वाँ श्लोक)
मुहम्मद साहब (सल्ल.) का जन्म 12 रबीउल अव्वल को हुआ। रबीउल अव्वल का अर्थ होता हैः मधुमास का हर्षोल्लास का महीना। आप मक्का में पैदा हुए। विष्णुयशसः कल्कि के पिता का नाम है, जबकि मुहम्मद साहब के पिता का नाम अब्दुल्लाह था। जो अर्थ विष्णुयश का होता है वही अब्दुल्लाह का। विष्णु यानी अल्लाह और यश यानी बन्दा = अर्थात अल्लाह का बन्दा = अब्दुल्लाह।
इसी तरह कल्कि की माता का नाम सुमति (सोमवती) आया है जिसका अर्थ है - शांति एवं मननशील स्वभाववाली। आप (सल्ल.) की माता का नाम भी आमिना था जिसका अर्थ है शांतिवाली।

अन्तिम अवतार की विशेषताएं
कल्कि की विशेषताएं हज़रत मुहम्मद साहब (सल्ल.) के जीवन (सीरत) से मिलती-जुलती हैं। इन विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन यहां पेश किया जा रहा है।
1. अश्वारोही और खड्गधारी - पहले लिखा जा चुका है कि भागवत पुराण में अंतिम अवतार के अश्वारोही और खड्गधारी होने का उल्लेख है। उसकी सवारी ऐसे घोड़े की होगी जो तेज़ गति से चलने वाला होगा और देवताओं द्वारा प्रदत्त होगा। तलवार से वह दुष्टों का संहार करेगा। घोड़े पर चढ़कर तलवार से दुष्टों का दमन करेगा। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को भी फ़रिश्तों द्वारा घोड़ा प्राप्त हुआ था, जिसका नाम बुर्राक़ था। उसपर बैठकर अंतिम रसूल ने रात्रि को तीर्थयात्रा की थी। इसे ‘मेराज’ भी कहते हैं। इस रात आपकी अल्लाह से बातचीत हुई थी और आपको बैतुलमक्‍किदस (यरूशलम) भी ले जाया गया था।
मुहम्मद साहब को घोड़े अधिक प्रिय थे। आपके पास सात घोड़े थे। हज़रत अनस (रजि.) से रिवायत है कि मैंने मुहम्मद (सल्ल.) को देखा कि घोड़े पर सवार थे और गले में तलवार लटकाए हुए थे। (बुख़ारी शरीफ़ की हदीस) आपके पास नौ तलवारें थीं। कुल परम्परा से प्राप्त तलवारें जुल्फ़िक़ार नामक तलवार, क़लईया नामवाली तलवार।
2. दुष्टों का दमन - कल्कि के प्रमुख विशेषताओं में एक विशेषता यह भी है कि यह दुष्टों का ही दमन करेगा। (भागवत पुराण 12-2-19) धर्म के प्रसार और दुष्टों के दमन में मदद के लिए देवता भी आकाश से उतर आएंगे; (यात यूयं भुवं देवाः स्वांशावतरणे रताः।) (कल्कि पुराण, अध्याय 2, श्लोक 7) हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने दुष्टो का दमन किया। उन्होंने डकैतों, लुटेरों और अन्य असामाजिक तत्वों को सुधारकर मानवता का पाठ पढ़ाया और उन्हें सत्य मार्ग दिखाया। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने ऐसे कुसंस्कृत लोगों का सुसंस्कृत से रहना सिखाया। औरतों को उनका हक़ दिलाया। एकेश्वर के साथ तमाम देवताओं के घालमेल का आपने ज़ोरदार खंडन किया तथा कहा कि इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है, बल्कि सनातन धर्म है। दुष्टों के दमन में आपको फ़रिश्तों की मदद मिली। कुरआन मजीद में अल्लाह कहता है कि अल्लाह ने तुमको बद्र की लड़ाई में मदद दी और तुम बहुत कम संख्या में थे, तो तुमको चाहिए कि तुम अल्लाह ही से डरो और उसी के शुक्रगुज़ार होओ। जब तुम मोमिनों से कह रहे थे कि क्या तुम्हारे लिए काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा रब तुमको तीन हज़ार फरिश्ते भेजकर करे, बल्कि अगर उसपर सब्र करो और अल्लाह से डरते रहो, तो अल्लाह तुम्हारी मदद पांच हज़ार फ़रिश्तों से करेगा। (कुरआन, सूरा आले इमरान, आयत संख्या 123, 124 और 125)।
सूरा अहज़ाब में भी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को ईश्वर की मदद मिलने का उल्लेख है। इस सूरह की आयत संख्या 9 में वर्णित है कि ‘‘ऐ ईमानवालों! अल्लाह की उस कृपा का स्मरण करो, जब तुम्हारे विरूद्ध सेनाएं आईं तो हमने भी उनके विरुद्ध पवन और ऐसी सेनाएं भेजीं, जिनको तुम नहीं देखते थे, और जो कुछ तुम कर रहे थे, वह अल्लाह देख रहा था।’’ इस प्रकार दुष्टों का नाश करने में ईश्वर ने हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मदद के लिए अपने फ़रिश्ते और अपनी सेनाएं भेजी।
3. जगत्पति - पति शब्द ‘पा’ (रक्षा करना) धातु में उति ‘प्रत्यय’ के संयोग से बना है। जगह का अर्थ है संसार। अतः जगत्पति का अर्थ हुआ संसार की रक्षा करने वाला। भागवत पुराण में अंतिम अवतार कल्कि को जगत्पति भी कहा गया है। (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 19 वां श्लोक)
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जगत्पति (संस्कृत के व्याकरणाचार्य वामन शिवराम आप्टे ने ‘‘पति’’ शब्द का अर्थ ‘‘प्रधानता करनेवाला’’ भी बताया है (देखिए, संस्कृत हिन्दी कोश, पृ. 568, मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स संस्करण 1989)। इस प्रकार जगत्पति का अर्थ हुआ: संसार में प्रधानता करनेवाला। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) जिस इस्लाम धर्म को लेकर आए, वह यद्यपि मानव जीवन के आरंभ से विद्यमान था, परन्तु आप (सल्ल.) के ज़रिए इसे पूर्णता और प्रधानता प्राप्त हुई। कुरआन में अल्लाह का कथन है: ‘‘आज मैंने तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी, और तुम्हारे लिए इस्लाम को ‘‘दीन’’ (धर्म) की हैसियत से पसंद किया।’’) (5ः3)
(अल्लाह के रसूल (सल्ल.) ने संसार में सत्य को प्रधानता दी, उसे फैलाया और लोगों को इसके लिए उभारा कि स्वयं भी सत्य का अनुसरण करें और दूसरों तक सत्य-संदेश पहुंचाएं। आप (सल्ल.) के द्वारा नेकियों और अच्छाइयों को प्रधानता मिली। अच्छे शील स्वभाव और नैतिकता की पूर्ति हुई। एक हदीस में आप (सल्ल.) ने कहा: ‘‘अल्लाह ने मुझे नैतिक गुणों और अच्छे कामों की पूर्ति के लिए भेजा है।’’) (शरहुस्सुन्नह) हैं, क्योंकि उन्होंने पतनशील समाज को बचाया। उसकी रक्षा की और संमार्ग दिखाया। आप सारे संसार के लोगों के लिए ईश्वर का संदेश लेकर आए। कुरआन में है-‘‘ऐ मुहम्मद एलान कर दो कि सारी दुनिया के लिए नबी होकर तुम आए हो।’’ (कुरआन, सूरा आराफ़, आयत संख्या 158) एक अन्य स्थान पर है-‘‘अत्यंत बरकतवाला है वह जिसने अपने बंदे पर पवित्रा ग्रन्थ कुरआन उतारा ताकि सम्पूर्ण संसार के लिए वह पापों का डर दिखानेवाला हो।’’ (कुरआन, सूरा फुरक़ान, आयत संख्या 1)
4. चार भाइयों के सहयोग से युक्त - कल्कि पुराण के अनुसार चार भाइयों के साथ कल्कि कलि (शैतान) का निवारण करेंगे। (चतुर्भिभ्र्रातृभिर्देव करिष्यामि कलिक्षयम्।) (कल्कि पुराण अध्याय 2, श्लोक 5)
मुहम्मद (सल्ल.) ने भी चार साथियों के साथ शैतान का नाश किया था। ये चार साथी थे-अबू बक्र (रजि.), उमर (रजि.), उसमान (रजि.) और अली (रजि.)।
5. अंतिम अवतार - कल्कि को अंतिम युग का अंतिम अवतार बताया है। (भागवत पुराण के 24 अवतारों के प्रकरण में कल्कि सबसे अंतिम अवतार हैं।) (भा.पु. प्रथम स्कंध, तृतीय अध्याय, 25वां श्लोक) मुहम्मद (सल्ल.) ने भी एलान किया था कि मैं अंतिम रसूल हूं।
‘कल्कि’ शब्द का अर्थ ‘वाचस्पत्यम्’ तथा ‘शब्दकल्पतरु’ में अनार का फल खानेवाले तथा कलंक को धोनेवाले किया गया है। पैग़म्बर (सल्ल.) भी अनार और खजूर का फल खाते थे तथा प्राचीन काल में आगत मिश्रण (शिर्क) और नास्तिकता (कुफ्र) को धो दिया। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब पृ. 41)
6. उपदेश और उत्तर दिशा की ओर जाना - कल्कि पैदा होने के पश्चात पहाड़ी की तरफ़ चले जाएंगे और वहां परशुराम जी से ज्ञान प्राप्त करेंगे। बाद मंे उत्तर की तरफ़ जाकर फिर लौटेंगे। मुहम्मद (सल्ल.) भी जन्म के कुछ समय बाद पहाड़ियों की तरफ़ चले गए और वहां जिबरील (अलैहि.) के ज़रिए अल्लाह का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद वे उत्तर मदीने जाकर वहां से फिर दक्षिण लौटे और अपने को जीत लिया। पुराणों में कल्कि के बारे में ऐसा भी लिखा है।
7. आठ सिद्धियों और गुणों से युक्त - कल्कि अवतार को भागवत पुराण 12 स्कन्ध, द्वितीय अध्याय में ‘अष्टैश्वर्यगुणान्वितः’ (आठ ईश्वरीय गुणों से युक्त) बताया गया है। ये आठ ईश्वरीय गुण महाभारत में भी उल्लेख किए गए हैं। ये गुण निम्मन हैं-
1. वह महान ज्ञानी होगा।
2. वह उच्च वंश का होगा।
3. वह आत्मनियंत्रक होगा।
4. वह श्रुतिज्ञानी होगा।
5. वह पराक्रमी होगा।
6. वह अल्पभाषी होगा।
7. वह दानी होगा और
8. वह कृतज्ञ होगा। (अष्टौगुणा: पुरुषं दीपयन्ति, प्रज्ञा च कौल्यं च दम श्रुतंच। पराक्रमश्चा बहुभाषिता च, दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च। - महाभारत)
अब हम इन गुणों को पैग़म्बरे इस्लाम (सल्ल.) के गुणों से क्रमवार साम्यता करेंगे। मुहम्मद (सल्ल.) महान ज्ञानी थे। उनमें प्रज्ञा दृष्टि थी।
आप (सल्ल.) ने भूत और भविष्य की अनेक बातें बताईं, जो एकदम सत्य सिद्ध हुईं।
पहले उल्लेख किया गया है कि रूमियों की हार और बाद में उनकी जीत की भविष्यवाणी मुहम्मद (सल्ल.) ने की थी। आपकी दूरदर्शिता से संबंधित अनेक उदाहरण हैं, जो आपके उच्च ज्ञान को सिद्ध करते हैं।
मुहम्मद (सल्ल.) उच्च वंश में पैदा हुए। आपका जन्म 571 ई. में कुरैश की पंक्ति में हाशिम परिवार में हुआ था, जो अरब के निवासियों द्वार माननीय और काबा का परम्परागत संरक्षक था।
हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) को इन्द्रियदमन या आत्मनियंत्राण का ईश्वरीय गुण भी प्राप्त था। आप आम्प्रशंसा से हीन, दयालु, शांत, इन्द्रियजीत और उदार थे। (Modesty and kinliness, patience, self deanial and riveted the affections off all around him, p.525, Life of Mohamed' by Sir Willaim Muir.)
आप श्रुतिज्ञानी भी थे। श्रुत का अर्थ है, ‘जो ईश्वर के द्वारा सुनाया गया और ऋषियों द्वारा सुना गया हो।’ मुहम्मद (सल्ल.) पर जिबरील (अलैहि.) नामक फ़रिश्ते के ज़रिए ईश्वरीय ज्ञान भेजा जाता था। लेनपूल अपनी पुस्तक ''Introduction, Speeches of Muhammad" में लिखते हैं कि मुहम्मद (सल्ल.) को देवदूत की सहायता से ईश्वरीय वाणी का भेजा जाना निस्संदेह सत्य है। सर विलियम म्योर ने भी लिखा है कि वे सन्देष्टा और ईश्वर के प्रतिनिधि थे। (He was now the Servant, the Prophet, the vice gerent of God.)
पराक्रम अष्टगुणों में पांचवां गुण है। रसूलुल्लाह (सल्ल.) काफ़ी पराक्रमी भी थे। आपके पराक्रम को दर्शाते हुए डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने एक घटना का ज़िक्र किया है जो इस प्रकार है-
‘किसी गुफा में अकेले उपस्थित पहलवान, जो कुरैश से सम्बंधित था, से मुहम्मद (सल्ल.) ने ईश्वर से न डरने और ईश्वर पर विश्वास ने करने का कारण पूछा, जिसपर पहलवान ने सत्य की स्पष्टता के लिए कहा। तब मुहम्मद (सल्ल.) ने कहा कि तू बड़ा वीर है, यदि कुश्ती में मैं तुझे नीच दिखाऊँ तो क्या विश्वास करेगा? उसेन स्वीकारात्मक उत्तर दिया। तब हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने उसे हरा दिया। (अल्लामा क़ाज़ी सलमान मंसूरपुरी ने अपनी सीरत की किताब ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ में ‘‘शिफ़ा’’ नामक पुस्तक के पृष्ठ 64 के हवाले से लिखा है कि आप (सल्ल.) ने उसे तीन बार हराया, फिर भी उस पहलवान ने मुहम्मद (सल्ल.) को पैग़म्बर न माना तथा ईश्वर की सत्यता पर विश्वास ने किया।
आठ गुणों में अल्पभाषी होना एक विशिष्ट गुण है। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) कम बोलते थे। अधिकतर मौन रहते परन्तु जो कुछ बोलते थे, वह इतना प्रभावोत्पादक होता था कि लोग आपकी बातें नहीं भूलते थे। (Introduction The speeches of Mohammad by Lane-Pool page-24)
दान देना महापुरुषों का एक प्रमुख गुण रहा है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) दान देने से पीछे नहीं हटते। यही कारण था कि आपके घर पर ग़रीबों की भीड़ लगी रहती थी। आपके घर से कभी कोई निराश होकर नहीं लौटा।
मुहम्मद (सल्ल.) के गुणों में कृतज्ञता भी थी। वे किसी के उपकार को नहीं भूलते। अनसार के प्रति कहे गए वाक्य आपकी कृतज्ञता का प्रमाण पेश करते हैं। (असह उस सियर, पृ. 343) इस प्रकार यह सिद्ध हो गया कि मुहम्मद (सल्ल.) में आठों ईश्वरीय गुणों का समावेश था।
8. शरीर से सुगन्ध का निकलना - भागवत पुराण में भविष्यवाणी की गई है कल्कि के शरीर से ऐसी सुगंध निकलेगी, जिससे लोगों के मन निर्मल हो जाएंगे। उनके शरीर की सुगंध हवा में मिलकर लोगों के मन को निर्मल करेगी। (अथ तेषां भविष्यन्ति मनांसि विशदानि वै। वासु देवांगरागति पुण्यगन्धानिल स्पृशाम्।) (भागवत पुराण, द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 21वां श्लोक) शिमायल तिरमिज़ी में लिखा है कि मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर की खुशबू तो प्रसिद्ध ही है। मुहम्मद (सल्ल.) जिससे हाथ मिलाते थे, उसके हाथ से दिनभर सुगन्ध आती रहती थी। (पृष्ठ 208, शिमाएल तिरमिज़ी, अनुवाद: मौलाना मुहम्मद ज़करिया)
एक बार उम्मे सुलैत ने मुहम्मद (सल्ल.) के शरीर का पसीना एकत्रा किया। आप (सल्ल.) के पूछने पर उन्होंने बताया कि इसे हम खुशबूओं में मिलाते हैं क्योंकि यह सभी सुगन्ध से बढ़कर है।
9. अनुपम कान्ति से युक्त - कल्कि अनुपम कान्ति से युक्त होंगे। (विचरन्नाशुना क्षोण्यां हयेनाप्रतिमद्युतिः। नृपलिंगच्छदो दस्यून्कोटिशोनिहनिष्यति।।) (भा.पु., द्वादश स्कंध, द्वितीय अध्याय, 20वां श्लोक) बुख़ारी शरीफ़ की हदीस के मुताबिक़ मुहम्मद (सल्ल.) सभी व्यक्तियों में अधिक सुंदर थे और सभी मनुष्यों में अधिक आदर्शवान एवं योद्धा थे। (हज़रत अनस (रजि.) की रिवायत, जमउल फ़वायद, पेज 178) सर विलियम म्योर ने भी मुहम्मद (सल्ल.) को बहुत सुंदर स्वरूपवाला, पराक्रमी और दीनी बताया है। ('e was' says and admiring follwen, the handsomest and bravest, the bright faced and most generous of men, P. 523, The Life of Mohammad')
10. ईश्वरीय वाणी का उपदेष्टा - डा. वेद प्रकाश उपध्याय ‘कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब’ के पृष्ठ 50, 51 पृष्ठ पर लिखते हैं कि ‘कल्कि के विषय में यह बात भारत में प्रसिद्ध ही है कि वह जो धर्म स्थापित करेंगे वह वैदिक धर्म होगा और उनके द्वारा उपदिष्ट शिक्षाएं ईश्वरीय शिक्षाएं होगी। मुहम्मद (सल्ल.) के द्वारा अभिव्यक्त कुरआन ईश्वरीय वाणी है, यह तो स्पष्ट ही है, भले ही हठी लोग इस बात को न मानें। क़ुरआन में जो नीति, सदाचार, प्रेम, उपकार आदि करने के लिए प्रेरणा के स्रोत विद्यमान हैं, वही वेद में भी है। कुरआन में मूर्ति पूजा भी खण्डन, एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा, परस्पर प्रेम के व्यवहार का उपदेश है। वेद में ‘एकम् सत्’ तथा विश्वबन्धुत्व की उत्कृष्ट घोषणा है। वेदों में ईश्वर की भक्ति का आदेश है और कुरआन की शिक्षा के द्वारा मुसलमान दिन में पाँच बार नमाज़ अवश्य पढ़ते हैं, जबकि ब्राह्मण वर्ग में बिरले लोग ही त्रिकाल संध्या करनेवाले मिलेंगे।
यहाँ यह तथ्य उजागर करना उचित होगा कि वेदों और कुरआन की शिक्षाओं में भी बहुत कुछ समानता है। मिसाल के तौर पर वेद, गीता और स्मृतियों में एक ईश्वर की भक्ति करने का आदेश है और अपनी की हुई बुराइयों की क्षमा माँगने के लिए भी उसी ईश्वर से प्रार्थना करने का आदेश है। क़ुरआन में है: ‘‘ऐ नबी! कह दो, मैं तो केवल तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूं। मेरी ओर वह्य (प्रकाशना) की जाती है कि तुम्हारा पूज्य अकेला पूज्य है, तो तुम सीधे उसी की ओर मुख करो और क्षमा भी उसी से माँगो। (हा. मीम. अस सजदा आयत संख्या 6।) डा. उपाध्याय कहते हैं कि कल्कि और मुहम्मद (सल्ल.) के विषय में जो अभूतपूर्व साम्य मुझे मिला उसे देखकर आश्चर्य होता है कि जिन कल्कि की प्रतीक्षा में भारतीय बैठे हैं, वे आ गए और वही मुहम्मद साहब हैं। (कल्कि अवतार और मुहम्मद साहब, पृ. 59)

उपनिषद् में भी मुहम्मद (सल्ल.) की चर्चा
उपनिषदों में भी मुहम्मद साहब और इस्लाम के बारे में जहाँ-तहाँ उल्लेख मिलता है। नागेंद्र नाथ बसु द्वारा संपादित विश्वकोष के द्वितीय खण्ड में उपनिषदों के वे श्लोक दिए गए हैं, जो इस्लाम और पैग़म्बर (सल्ल.) से ताल्लुक़ रखते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख श्लोक और उनके अर्थ प्रस्तुत किए जा रहे हैं ताकि पाठकों वास्तविकता का पता चल सके-
अस्माल्लां इल्ले मित्रावरुणा दिव्यानि धत्त
इल्लल्ले वरुणो राजा पुनर्दुदः।
हयामित्रो इल्लां इल्लां वरुणो मित्रास्तेजस्कामः ।। 1 ।।
होतारमिन्द्रो होतारमिन्द्र महासुरिन्द्राः।
अल्लो ज्येष्ठं श्रेष्ठं परमं पूर्ण बह्माणं अल्लाम् ।। 2 ।।
अल्लो रसूल महामद रकबरस्य अल्लो अल्लाम् ।। 3 ।।
(अल्लोपनिषद 1, 2, 3)
अर्थात, ‘‘इस देवता का नाम अल्लाह है। वह एक है। मित्रा वरुण आदि उसकी विशेषताएँ हैं। वास्तव में अल्लाह वरुण है जो तमाम सृष्टि का बादशाह है। मित्रो! उस अल्लाह को अपना पूज्य समझो। यह वरुण है और एक दोस्त की तरह वह तमाम लोगों के काम संवारता है। वह इंद्र है, श्रेष्ठ इंद्र। अल्लाह सबसे बड़ा, सबसे बेहतर, सबसे ज़्यादा पूर्ण और सबसे ज़्यादा पवित्रा है। मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के श्रेष्ठतर रसूल हैं। अल्लाह आदि, अंत और सारे संसार का पालनहार है। तमाम अच्छे काम अल्लाह के लिए ही हैं। वास्तव में अल्लाह ही ने सूरज, चांद और सितारे पैदा किए हैं।’’
उपयुक्त उद्धरणों से यह निर्विवाद रूप से स्पष्ट हुआ कि सर्वशक्तिमान अल्लाह एक है और मुहम्मद (सल्ल.) उसके सन्देशवाहक (पैग़म्बर) हैं। इस उपनिषद के अन्य श्लोकों में भी इस्लाम और मुहम्मद (सल्ल.) की साम्यगत बातें आई हैं। इस उपनिषद में आगे कहा गया है-
आदल्ला बूक मेककम्। अल्लबूक निखादकम् ।। 4 ।।
अलो यज्ञेन हुत हुत्वा अल्ला सूय्र्य चन्द्र सर्वनक्षत्राः ।। 5 ।।
अल्लो ऋषीणां सर्व दिव्यां इन्द्राय पूर्व माया परमन्तरिक्षा ।। 6 ।।
अल्लः पृथिव्या अन्तरिक्ष्ज्ञं विश्वरूपम् ।। 7 ।।
इल्लांकबर इल्लांकबर इल्लां इल्लल्लेति इल्लल्लाः ।। 8 ।।
ओम् अल्ला इल्लल्ला अनादि स्वरूपाय अथर्वण श्यामा हुद्दी जनान पशून सिद्धांत
जलवरान् अदृष्टं कुरु कुरु फट ।। 9 ।।
असुरसंहारिणी हृं द्दीं अल्लो रसूल महमदरकबरस्य अल्लो अल्लाम्
इल्लल्लेति इल्लल्ला ।। 10 ।।
इति अल्लोपनिषद
अर्थात् ‘‘अल्लाह ने सब ऋषि भेजे और चंद्रमा, सूर्य एवं तारों को पैदा किया। उसी ने सारे ऋषि भेजे और आकाश को पैदा किया। अल्लाह ने ब्रह्माण्ड (ज़मीन और आकाश) को बनाया। अल्लाह श्रेष्ठ है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह सारे विश्व का पालनहार है। वह तमाम बुराइयों और मुसीबतों को दूर करने वाला है। मुहम्मद अल्लाह के रसूल (संदेष्टा) हैं, जो इस संसार का पालनहार है। अतः घोषणा करो कि अल्लाह एक है और उसके सिवा कोई पूज्य नहीं।’’ (बहुत थोड़े से विद्वान, जिनका संबंध विशेष रूप से आर्यसमाज से बताया जाता है, अल्लोपनिषद् की गणना उपनिषदों में नहीं करते और इस प्रकार इसका इनकार करते हैं, हालांकि उनके तर्कों में दम नहीं है। इस कारण से भी हिन्दू धर्म के अधिकतर विद्वान और मनीषी अपवादियों के आग्रह पर ध्यान नहीं देते। गीता प्रेस (गोरखपुर) का नाम हिन्दू धर्म के प्रमाणिक प्रकाशन केंद्र के रूप में अग्रगण्य है। यहां से प्रकाशित ‘‘कल्याण’’ (हिन्दी पत्रिका) के अंक अत्यंत प्रामाणिक माने जाते हैं। इसकी विशेष प्रस्तुति ‘‘उपनिषद अंक’’ में 220 उपनिषदों की सूची दी गई है, जिसमें अल्लोपनिषद् का उल्लेख 15वें नंबर पर किया गया है। 14वें नंबर पर अमत बिन्दूपनिषद् और 16वें नंबर पर अवधूतोपनिषद् (पद्य) उल्लिखित है। डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने भी अल्लोपनिषद को प्रामाणिक उपनिषद् माना है। ‘देखिए: वैदिक साहित्य: एक विवेचन, प्रदीप प्रकाशन, पृ. 101, संस्करण 1989।)

प्राणनाथी (प्रणामी) सम्प्रदाय की शिक्षा
हिन्दुओं के वैष्णव समुदाय में प्राणनाथी सम्प्रदाय उल्लेखनीय है। इसके संस्थापक एंव प्रवर्तक महामति प्राणनाथ थे। आपका जन्म का नाम मेहराज ठाकुर था। प्राणनाथ जी का जन्म 1618 ई. में गुजरात के जामनगर शहर में हुआ था। आपने इन्सानों को एकेश्वरवाद की शिक्षा दी और एक ही निराकार ईश्वर की पूजा-उपासना पर बल दिया। आपने नुबूव्वत अर्थात ईशदूतत्व की धारणा का समर्थन किया और इसे सही ठहराया। प्राणनाथ जी कहते हैं-
कै बड़े कहे पैगमंर, पर एक महमंद पर खतम।
अर्थात, धर्मग्रंथों में अनेकों पैग़म्बर बड़े कहे गए, किन्तु मुहम्मद साहब पर ईशदूतों की श्रृंखला समाप्त हुई। रसूल मुहम्मद (सल्ल.) आख़िरी पैग़म्बर हुए। (मारफ़त सागर, पृ. 39, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)
प्राणनाथ जी ने एक स्थान पर लिखा-
रसूल आवेगा तुम पर, ले मेरा फुरमान।
आए मेर अरस की, देखी सब पेहेचान।।
अर्थात, (ईश्वर ने कहाः) मेरा रसूल मुहम्मद तुम्हारे पास मेरा संदेश लेकर आएगा। वह संसार में आकर तुम्हें मेरे अर्श या परमधाम की सब तरह से पहचान कराने के लिए कुछ संकेत देगा। (मारफ़त सागर, पृ. 19, श्री प्राणनाथ मिशन, नई दिल्ली।)

हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और बौद्ध धर्म ग्रन्थ
अंतिम बुद्ध-मैत्रेय और मुहम्मद (सल्ल.)

बौद्ध ग्रन्थों में जिस अंतिम बुद्धि मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है, वे हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही सिद्ध होते हैं। ‘बुद्ध’ बौद्ध धर्म की भाषा में ऋषि होते हैं। गौतम बुद्ध ने अपने मृत्यु के समय अपने प्रिय शिष्य आनन्दा से कहा था कि ‘‘नन्दा! इस संसार में मैं न तो प्रथम बुद्ध हूं और न तो अंतिम बुद्ध हूं। इस जगत् में सत्य और परोपकार की शिक्षा देने के लिए अपने समय पर एक और ‘बुद्ध’ आएगा। यह पवित्र अन्तःकरणवाला होगा। उसका हृदय शुद्ध होगा। ज्ञान और बुद्धि से सम्पन्न तथा समस्त लोगों का नायक होगा। जिस प्रकार मैंने संसार को अनश्वर सत्य की शिक्षा प्रदान की, उसी प्रकार वह भी विश्व को सत्य की शिक्षा देगा। विश्व को वह ऐसा जीवन-मार्ग दिखाएगा जो शुद्ध तथा पूर्ण भी होगा। नन्दा! उसका नाम मैत्रेय होगा। (Gospel of Buddha, by Carus, P-217) बुद्ध का अर्थ ‘बुद्धि से युक्त’ होता है। बुद्ध मनुष्य ही होते हैं, देवता आदि नहीं। (It is only a human being tha can be a Buddha, a deity can not. 'Mohammad in the Buddist Scriputures P.1')
मैत्रेय का अर्थ 'दया से युक्‍त' होता है।

मैत्रेय की मुहम्मद (सल्ल.) से समानता
अंतिम बुद्ध मैत्रेय में बुद्ध की सभी विशेषताओं का पाया जाना स्वाभाविक है। बुद्ध की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं।
1. वह ऐश्वर्यवान् एवं धनवान होता है।
2. वह सन्तान से युक्त होता है।
3. वह स्त्री और शासन से युक्त रहता है।
4. वह अपनी पूर्ण आयु तक जीता है। (Warren,P. 79)
5. वह अपना काम खुद करता है। ( The Dhammapada, S.B.E Vol. X.P.P. 67)
6. बुद्ध केवल धर्म प्रचारक होते हैं। (The Tathgatas are only preaches, 'The Dhammapada S.B.E. Vol X. P.67)
7. जिस समय बुद्ध एकान्त में रहता है, उस समय ईश्वर उसके साथियों के रूप में देवताओं और राक्षसों को भेजता है। (Saddharma-Pundrika, S.B.E. Vol XXI., P. 225)
8. संसार में एक समय में केवल एक ही बुद्ध रहता है। (The life and teachings of Buddha, Anagarika Dhammapada P. 84)
9. बुद्ध के अनुयायी पक्के अनुयायी होते हैं, जिन्हें कोई भी उनके मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। (Dhammapada, S.B.E. Vol. X. P. 67)
10. उसका कोई व्यक्ति गुरु न होगा। (Romantic History of Buddha, by Beal, P.241)
11. प्रत्येक बुद्ध अपने पूर्णवर्ती बुद्ध का स्मरण कराता है और अपने अनुयायियों को ‘मार’ से बचने की चेतावनी देता है। (Dhammapada, S.B.E. Vol. X1, P. 64) मार का अर्थ बुराई और विनाश को फैलनेवाला होता है। इसे शैतान कहते हैं।
12. सामान्य पुरुषों की अपेक्षा बुद्धों की गर्दन की हड्डी अत्यधिक दृढ़ हाती थी, जिससे वे गर्दन मोड़ते समय अपने पूरे शरीर को हाथी की तरह घुमा लेते थे।
अंतिम बुद्ध मैत्रेय की इनके अलावा अन्य विशेषताएं भी हैं। मैत्रेय के दयावान होने और बोधि वृक्ष के नीचे सभा का आयोजन करनेवाला भी बताया गया है। इस वृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति होती है।
डा. वेद प्रकाश उपाध्याय ने यह सिद्ध किया है ये सभी विशेषताएँ मुहम्मद (सल्ल.) के जीवन में मिलती है। तथा अंतिम बुद्ध मैत्रेय हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं। डा. उपाध्याय द्वारा इस विषय में प्रस्तुत तथ्य यहाँ ज्यों के त्यों प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
‘कुरआन में मुहम्मद साहब के ऐश्वर्यवान और धनवान होने के विषय में यह ईश्वरीय वाणी है कि ‘तुम पहले निर्धन थे, हमने तुमको धनी बना दिया।’ मुहम्मद साहब ऋषि पद प्राप्त करने के बहुत पहले धनी हो गए थे। (‘व-व-ज-द-क-आ-इलन फ़अग्ना’) (और तुमको निर्धन पाया, बाद में तुमको धनी कर दिया) मुहम्मद साहब के पास अनेक घोड़े थे। उनकी सवारी के रूप में प्रसिद्ध ऊंटनी ‘अलकसवा’ थी, जिस पर सवार होकर मक्का से मदीना गए थे और बीस की संख्या में ऊंटनियां थीं, जिसका दूध मुहम्मद साहब और उनके बाल-बच्चों के पीने के लिए पर्याप्त था, साथ ही साथ सभी अतिथियों के लिए भी पर्याप्त था। ऊंटनियों का दूध ही मुहम्मद साहब व उनके बाल-बच्चों का प्रमुख आहार था। मुहम्मद साहब के पास सात बकरियां थीं, तो दूध का साधन थीं। मुहम्मद साहब दूध की प्राप्ति के लिए भैंसे नहीं रखते थे, इसका कारण यह है कि अरब में भैंसे नहीं होती। (Life of Mohomet-Sir William Muir 'Cambridge, Edition P. 545-54) उनकी सात बाग़ें खजूर की थीं जो बाद में धार्मिक कार्यों के लिए मुहम्मद साहब द्वारा दे दी गई थीं।
मुहम्मद साहब के पास के पास तीन भूमिगत सम्पत्तियां थीं, जो कई बीघे के क्षेत्रा में थीं। मुहम्मद साहब के अधिकार में कई कुएं भी थे। इतना स्मरणीय है कि अरब में कुआँ का होना बहुत बड़ी सम्पत्ति समझी जाती थी, क्योंकि वहां रेगिस्तानी भू-भाग है। मुहम्मद साहब की 12 पत्नियां, चार लड़कियां और तीन लड़के थे। बुद्ध के अंतर्गत पत्नी और संतान का होना द्वितीय गुण है। मुहम्मद साहब के पूर्ववर्ती भारतीय बुद्धों में यह गुण नाम मात्र को पाया जाता था, परन्तु मुहम्मद साहब के पास उसका 12 गुना गुण विद्यमान था। (Life of Mahomet-Sir William Muir (Cambridge Edition) P. 547)
मुहम्मद साहब ने शासन भी किया। अपने जीवनकाल में ही उन्होंने बड़े-बड़े राजाओं को पराजित करे उनपर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। अरब के सम्राट होने पर भी उनका भोज्य पदार्थ पूर्ववत् था। (The fare of the desert seemed most congenial to hi, even when he was sovereign of Arabia.)
मुहम्मद साहब अपनी पूर्ण आयु तक जीवित रहे। अल्पायु में उनका देहावसान नहीं हुआ और न तो वे किसी के द्वारा मारे गए।
मुहम्मद साहब अपना काम स्वयं कर लेते थे। उन्होंने जीवन भर धर्म का प्रचार किया। उनके धर्म प्रचारक स्वरूप की पुष्टि अनेक इतिहासकारों ने भी की है। (Mohammad and Mohammadenism by Bosworth smith, P. 98)
मुहम्मद साहब ने भी अपने पूर्ववर्ती ऋषियों का समर्थन किया, इस बात के लिए आप पूरा कुरआन देख सकते हैं। उदाहरण के रूप में कुरआन में दूसरी सूरा में उल्लेख है-
‘‘ऐ आस्तिको! (मुसलमानों) तुम कहा कि हम ईश्वर पर पूर्ण आस्था रखते हैं और जो पुस्तक हम पर अवतीर्ण हुई, उसपर और जो-जो कुछ इब्राहीम, इसमाईल और याकूब पर और उनकी संतान (ऋषियों) पर और जो कुछ मूसा और ईसा को दी गई उन पर भी और जो कुछ अनेक ऋषियों को उनके पालक (ईश्वर) की ओर से उपलब्ध हुई, उन पर भी हम आस्था रखते हैं और उन ऋषियों में किसी प्रकार का अंतर नहीं मानते हैं, और हम उसी एक ईश्वर के माननेवाले हैं।’’ (कुरआन, सूरा-2, आयत 236)
मुहम्मद साहब ने अपने अनुयायियों को शैतान से बचने की चेतावनी बार-बार दी थी। कुरआन में शैतान से बचने के लिए यह कहा गया है कि जो शैतान को अपना मित्र बनाएगा, उसे वह भटका देगा और नारकीय कष्टों का मार्ग प्रदर्शित करेगा। (कुरआन, सूरा-22, आयत 4)
मुहम्मद साहब के अनुयायी कभी भी मुहम्मद साहब के बताए हुए मार्ग से विचलित न होते हुए उनकी पक्की शिष्यता अथवा मैत्री में आबद्ध रहते हैं। मुहम्मद साहब के अनुयायियों ने आमरण उनका संग नहीं छोड़ा, भले ही उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ा हो। संसार में जिस समय मुहम्मद साहब बुद्ध थे, उस समय किसी भी देश में कोई अन्य बुद्ध नहीं था। मुहम्मद साहब के बुद्ध होने के समय सम्पूर्ण संसार की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी।
मुहम्मद साहब का कोई भी गुरु संसार का व्यक्ति नहीं था। मुहम्मद साहब पढ़े-लिखे भी नहीं थे, इसीलिए उन्हें, ‘उम्मी’ भी कहा जाता है। ईश्वर द्वारा मुहम्मद साहब के अंतःकरण में उतारी गई आयतों की संहिता कुरआन है। प्रत्येक बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष का होना आवश्यक है। किसी बुद्ध के लिए बोधिवृक्ष के रूप में अश्वत्थ (पीपल), किसी के लिए न्यग्रोध (बरगद) तथा किसी बुद्ध के लिए उदुम्बर (गूलर) प्रयुक्त हुआ है। बुद्ध के लिए जिस बोधिवृक्ष का होना बताया गया है, वह कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष है (According to some of the modern Buddhist Scholars the Bo-tree of the Buddha Maierya is the Iron wood-tree (Mohammad in the Buddhist scriptures. P. 64) ।
हज़रत मुहम्मद साहब के लिए बोधिवृक्ष के रूप में हुदैबिया स्थान में एक कड़ी और भारयुक्त काष्ठवाला वृक्ष था, जिसके नीचे मुहम्मद साहब ने सभा भी की थी।
‘मैत्रेय’ का अर्थ होता है-दया से युक्त। 16 अक्तूबर सन् 1930 ‘लीडर’ पृ. 7 कालम 3 में एक बौद्ध ने ‘मैत्रेय’ का अर्थ ‘दया’ किया है। मुहम्मद साहब दया से युक्त थे। इसी कारण मुहम्मद साहब को ‘‘रहमतुललिल आलमीन’’ कहा जाता है। (वमा अर्सल्ना-क-इल्ला रहमतलिल आलमीन) (कुरआन, सूरा-11, आयत 107) (ऐ मुहम्मद! हमने तुमको सारी दुनिया के लिए दया बनाकर भेजा।) जिसका अर्थ है-‘समस्त संसार के लिए दया से युक्त।’ (‘नराशंस और अंतिम ऋषि’ पृष्ठ 54 से 58)
स्वर्गीय बोधिवृक्ष बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में है। कहा गया है कि बुद्ध स्थिर दृष्टि से उस बोधिवृक्ष को देखता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी जन्नत में एक वृक्ष देखा था, जो ईश्वर के सिंहासन के दाहिनी ओर विद्यमान था। यह वृक्ष इतने बड़े क्षेत्र में था जिसे एक घुड़सवार लगभग सौ वर्षों में भी उसकी छाया को पार नहीं कर सकता (In Paradise there is a tree (such) that a rider can not cross its shade in hundred years.(Mohammad in the Buddhist Scriptures, Page 79)। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने भी स्वर्गीय वृक्ष को आँख गड़ाए हुए देखा था।
मैत्रेय के बारे में यह भी कहा गया है कि किसी भी तरफ़ मुड़ते समय वह अपने शरीर को पूरा घुमा लेगा। मुहम्मद साहब भी किसी मित्र की ओर देखते समय अपने शरीर को पूरा घुमा लेते थे (If the turned in conversation towards a friend he turned not partially but with his full face and his whole body. (Ther Life of Mahommad by William Muir, Page 511, 512)। इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि बौद्ध ग्रन्थों में जिस मैत्रेय के आने की भविष्यवाणी की गई है वह हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ही हैं।

जैन धर्म और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)
डा. पी. एच. चैबे ने लिखा है-
‘‘मैं मुहम्मद (सल्ल.) को कल्कि अवतार मानता हूं। पुराणों में इस अवतार (पैग़म्बर) का वर्णन है। कहा गया है कि कल्कि अवतार बुद्धावतार के बाद होगा, जिसका जन्म शम्भल नामक नगर में एक पुजारी परिवार में होगा, उसकी सवारी घोड़ा और हथियार तलवार होगा। वह सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपने सत्य धर्म की विजय करेगा (विस्तृत विवरण के लिए देखें कल्कि पुराण)
जैन धर्म के ग्रंथकारों ने भी कल्कि अवतार का वर्णन किया है और उसके आने का काल महावीर स्वामी ने निर्वाण के एक हज़ार वर्ष बाद माना है। महावीर स्वामी के निर्वाण का वर्ष प्रायः 571 ई.पू. निश्चित किया जाता है। इस प्रकार एक हज़ार वर्ष बाद कल्कि अवतार का आगमन होता है। हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्मकाल वही वर्ष पड़ता है जो कल्कि अवतार के आने का काल है। कल्कि अवतार की अन्य विशेषताएं और उसके गुण हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) से साम्यता रखते हैं। एक प्रसिद्ध जैन लेखक जिसने अपने ग्रंथ हरिवंश पुराण में लिखा है कि महावीर के निर्वाण के 605 वर्ष 5 माह बाद शक राज का जन्म हुआ तथा गुप्त संवत 231 वर्ष के शासन के बाद कल्कि अवतार का जन्म हुआ। इस आशय का श्लोक इस प्रकार है-
‘‘.... गुप्तानां चश्त दूयम।
एक विंवश् च वर्षाणि कालविद् भिरुदा हृतम ।। 490 ।।
चित्वा रिंश देवातः कल्किराजस्य राजता।
ततोड जिटंजयों राजा स्यादिन्द्रपुर संस्थितः ।। 491 ।।
----जिनसेन कृत हरिवंश पुराण अ. 60

दूसरे जैन ग्रंथकार गुणभद्र ने उत्तर पुराण में लिखा है कि महावीर निर्वाण के 1000 वर्ष बाद कल्किराज का जन्म हुआ। (Indian Antiquary Vol. X V.V. 143)

तीसरे जैन ग्रंथकार नेमिचंद्र अपने ग्रंथ ‘त्रिलोकसागर’ में लिखते हैं, ‘‘शकराज निर्वाण के 605 वर्ष 5 माह बाद तथा शककाल से 394 वर्ष 7 माह पश्चात कल्कि राज पैदा हुआ।’’ इस ग्रंथ में इस भाव का वाक्य है-
‘‘पणछस्सयं वस्संपण मासजदं गमिय वीर णिवुइ दो।
सगराजो सो कल्कि चतुणवतिय महिप सगमासं।।’’ - त्रिलोकसार, पृ. 32
इस प्रकार ऐसा लगता है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) वही थे, धर्माचायों ने जिनके बारे में बताया।
सचमुच जिस प्रकार जब तक एक शासक शासन करता है तब तक उसके द्वारा बताए नियम का पालन जनता करती है, परन्तु उसके शासन के समाप्त होते ही दूसरे शासक के आदेशों को लोग शिरोधार्य करते हैं, ठीक उसी प्रकार जब तक जिस शास्ता, अवतार, पैग़म्बर का काल रहता है उसकी आज्ञाओं-उपदेशों का फैलाव होता है परन्तु उसके उपदेशों में विकृति आते ही ईश्वर की तरफ़ से जब दूसरा पैग़म्बर, अवतार आता है तो उसका शासन चलता है। इस लिहाज़ से आज हम हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) अन्तिम ‘रसूल’ अथवा आख़िरी अवतार ‘कल्कि’ के ‘शासन काल’ में हैं और अब प्रलय (क़ियामत) तक उनका शासन रहेगा, जिनका प्रमाण पुराण, कुरआन और अन्य ग्रन्थ दे चुके हैं। अतएव हमारे लिए अन्तिम शास्ता (हज़रत मुहम्मद) के ही ‘शासन’ में रहकर आपके उपदेशों व आचारों का अनुगमन करना ही आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों पक्षों से उचित है। इससे हमारा संसार व परलोक दोनों सुधर सकता है।
अतः अंतिम संदेष्टा, पैग़म्बर, ‘कल्कि अवतार’ हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के उपदेशों का अनुगमन ही आपके प्रति सही एवं सच्चे अर्थों में श्रद्धा-अर्पण होगा। यही ईश समर्पण के लिए सच्चा मार्ग होता है।’’ (कान्ति मासिक (दिल्ली), जुलाई 1997, पृ. 33-34)
.................पुस्तक समाप्त ..............

अधिक जानकारी के लिये पढें
पुस्‍तकः "नराशंस और अंतिम ऋष‍ि" (ए‍ेतिहासकि शोध) --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्‍याय
कल्कि अवतार और मुहम्‍मद सल्ल. --- डॉ. वेदप्रकाश उपाध्‍याय

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http://www.scribd.com/doc/8620683/Kalki-Avtar-Book