तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।। -
पुस्तक एवं लेखक:‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार
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औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था।
हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। (5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर (अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं।
(mandir dhane ki ghatna)
निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को मिरफतर कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है।
(masjid todne ki ghatna oranzeb)
गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालुगज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षों में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया। ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और पनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोडने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।
Tipu sultan ke baare men is kitab men padhen
https://www.scribd.com/doc/20107281/टीपु-सुल-तान-Tipu-Sultan-Aurangzeb-औरंगजेब-True-Story-Hindi
https://www.scribd.com/doc/20107281/टीपु-सुल-तान-Tipu-Sultan-Aurangzeb-औरंगजेब-True-Story-Hindi
book: इतिहास के साथ यह अन्याय!!-- प्रो. बी. एन. पाण्डेय--:भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा एवं इतिहासकार, राज्यसभा के सदस्य और इतिहासकार प्रो. विश्म्भरनाथ पाण्डेय, महात्मा गांधी की वह टिप्पणी ‘यंग इण्डिया में आगे कहा गया है- ‘‘टीपू सुल्तान ने हिन्दू मन्दिरों विशेष रूप से श्री वेंकटरमण, श्री निवास और श्रीरंगनाथ मन्दिरों की ज़मीनें एवं अन्य वस्तुओं के रूप में बहुमूल्य उपहार दिए। कुछ मन्दिर उसके महलों के अहाते में थे यह उसके खुले जेहन, उदारता एवं सहिष्णुता का जीता-जागता प्रमाण है।
साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय,मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-25 औरंगज़ेब
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कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।। -
पुस्तक एवं लेखक:‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय, भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा, राज्यसभा के सदस्य, इलाहाबाद नगरपालिका के चेयरमैन एवं इतिहासकार
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जब में इलाहाबाद नगरपालिका का चेयरमैन था (1948 ई. से 1953 ई. तक) तो मेरे सामने दाखिल-खारिज का एक मामला लाया गया। यह मामला सोमेश्वर नाथ महादेव मन्दिर से संबंधित जायदाद के बारे में था। मन्दिर के महंत की मृत्यु के बाद उस जायदाद के दो दावेदार खड़े हो गए थे। एक दावेदार ने कुछ दस्तावेज़ दाखिल किये जो उसके खानदान में बहुत दिनों से चले आ रहे थे। इन दस्तावेज़ों में शहंशाह औरंगज़ेब के फ़रमान भी थे। औरंगज़ेब ने इस मन्दिर को जागीर और नक़द अनुदान दिया था। मैंने सोचा कि ये फ़रमान जाली होंगे। मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कैसे हो सकता है कि औरंगज़ेब जो मन्दिरों को तोडने के लिए प्रसिद्ध है, वह एक मन्दिर को यह कह कर जागीर दे सकता हे यह जागीर पूजा और भोग के लिए दी जा रही है। आखि़र औरंगज़ेब कैस बुतपरस्ती के साथ अपने को शरीक कर सकता था। मुझे यक़ीन था कि ये दस्तावेज़ जाली हैं, परन्तु कोई निर्णय लेने से पहले मैंने डा. सर तेज बहादुर सप्रु से राय लेना उचित समझा। वे अरबी और फ़ारसी के अच्छे जानकार थे। मैंने दस्तावेज़ें उनके सामने पेश करके उनकी राय मालूम की तो उन्होंने दस्तावेज़ों का अध्ययन करने के बाद कहा कि औरंगजे़ब के ये फ़रमान असली और वास्तविक हैं। इसके बाद उन्होंने अपने मुन्शी से बनारस के जंगमबाडी शिव मन्दिर की फ़ाइल लाने को कहा। यह मुक़दमा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 15 साल से विचाराधीन था। जंगमबाड़ी मन्दिर के महंत के पास भी औरंगज़ेब के कई फ़रमान थे, जिनमें मन्दिर को जागीर दी गई थी।
इन दस्तावेज़ों ने औरंगज़ेब की एक नई तस्वीर मेरे सामने पेश की, उससे मैं आश्चर्य में पड़ गया। डाक्टर सप्रू की सलाह पर मैंने भारत के पिभिन्न प्रमुख मन्दिरों के महंतो के पास पत्र भेजकर उनसे निवेदन किया कि यदि उनके पास औरंगज़ेब के कुछ फ़रमान हों जिनमें उन मन्दिरों को जागीरें दी गई हों तो वे कृपा करके उनकी फोटो-स्टेट कापियां मेरे पास भेज दें। अब मेरे सामने एक और आश्चर्य की बात आई। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर, चित्रकूट के बालाजी मन्दिर, गौहाटी के उमानन्द मन्दिर, शत्रुन्जाई के जैन मन्दिर और उत्तर भारत में फैले हुए अन्य प्रमुख मन्दिरों एवं गुरूद्वारों से सम्बन्धित जागीरों के लिए औरंगज़ेब के फरमानों की नक़लें मुझे प्राप्त हुई। यह फ़रमान 1065 हि. से 1091 हि., अर्थात 1659 से 1685 ई. के बीच जारी किए गए थे। हालांकि हिन्दुओं और उनके मन्दिरों के प्रति औरंगज़ेब के उदार रवैये की ये कुछ मिसालें हैं, फिर भी इनसे यह प्रमाण्ति हो जाता है कि इतिहासकारों ने उसके सम्बन्ध में जो कुछ लिखा है, वह पक्षपात पर आधारित है और इससे उसकी तस्वीर का एक ही रूख सामने लाया गया है। भारत एक विशाल देश है, जिसमें हज़ारों मन्दिर चारों ओर फैले हुए हैं। यदि सही ढ़ंग से खोजबीन की जाए तो मुझे विश्वास है कि और बहुत-से ऐसे उदाहरण मिल जाऐंगे जिनसे औरंगज़ेब का गै़र-मुस्लिमों के प्रति उदार व्यवहार का पता चलेगा। औरंगज़ेब के फरमानों की जांच-पड़ताल के सिलसिले में मेरा सम्पर्क श्री ज्ञानचंद और पटना म्यूजियम के भूतपूर्व क्यूरेटर डा. पी एल. गुप्ता से हुआ। ये महानुभाव भी औरंगज़ेब के विषय में ऐतिहासिक दृस्टि से अति महत्वपूर्ण रिसर्च कर रहे थे। मुझे खुशी हुई कि कुछ अन्य अनुसन्धानकर्ता भी सच्चाई को तलाश करने में व्यस्त हैं और काफ़ी बदनाम औरंगज़ेब की तस्वीर को साफ़ करने में अपना योगदान दे रहे हैं। औरंगज़ेब, जिसे पक्षपाती इतिहासकारों ने भारत में मुस्लिम हकूमत का प्रतीक मान रखा है। उसके बारें में वे क्या विचार रखते हैं इसके विषय में यहां तक कि ‘शिबली’ जैसे इतिहास गवेषी कवि को कहना पड़ाः
तुम्हें ले-दे के सारी दास्तां में याद है इतना।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।
कि औरंगज़ेब हिन्दू-कुश था, ज़ालिम था, सितमगर था।।
औरंगज़ेब पर हिन्दू-दुश्मनी के आरोप के सम्बन्ध में जिस फरमान को बहुत उछाला गया है, वह ‘फ़रमाने-बनारस’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह फ़रमान बनारस के मुहल्ला गौरी के एक ब्राहमण परिवार से संबंधित है। 1905 ई. में इसे गोपी उपाघ्याय के नवासे मंगल पाण्डेय ने सिटि मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया था। एसे पहली बार ‘एसियाटिक- सोसाइटी’ बंगाल के जर्नल (पत्रिका) ने 1911 ई. में प्रकाशित किया था। फलस्वरूप रिसर्च करनेवालों का ध्यान इधर गया। तब से इतिहासकार प्रायः इसका हवाला देते आ रहे हैं और वे इसके आधार पर औरंगज़ेब पर आरोप लगाते हैं कि उसने हिन्दू मन्दिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था, जबकि इस फ़रमान का वास्तविक महत्व उनकी निगाहों से आझल रह जाता है। यह लिखित फ़रमान औरंगज़ेब ने 15 जुमादुल-अव्वल 1065 हि. (10 मार्च 1659 ई.) को बनारस के स्थानिय अधिकारी के नाम भेजा था जो एक ब्राहम्ण की शिकायत के सिलसिले में जारी किया गया था। वह ब्राहमण एक मन्दिर का महंत था और कुछ लोग उसे परेशान कर रहे थे। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘अबुल हसन को हमारी शाही उदारता का क़ायल रहते हुए यह जानना चाहिए कि हमारी स्वाभाविक दयालुता और प्राकृतिक न्याय के अनुसार हमारा सारा अनथक संघर्ष और न्यायप्रिय इरादों का उद्देश्य जन-कल्याण को अढ़ावा देना है और प्रत्येक उच्च एवं निम्न वर्गों के हालात को बेहतर बनाना है। अपने पवित्र कानून के अनुसार हमने फैसला किया है कि प्राचीन मन्दिरों को तबाह और बरबाद नहीं किया जाय, बलबत्ता नए मन्दिर न बनए जाएँ। हमारे इस न्याय पर आधारित काल में हमारे प्रतिष्ठित एवं पवित्र दरबार में यह सूचना पहुंची है कि कुछ लोग बनारस शहर और उसके आस-पास के हिन्दू नागरिकों और मन्दिरों के ब्राहम्णों-पुरोहितों को परेशान कर रहे हैं तथा उनके मामलों में दख़ल दे रहे हैं, जबकि ये प्राचीन मन्दिर उन्हीं की देख-रेख में हैं। इसके अतिरिक्त वे चाहते हैं कि इन ब्राहम्णों को इनके पुराने पदों से हटा दें। यह दखलंदाज़ी इस समुदाय के लिए परेशानी का कारण है। इसलिए यह हमारा फ़रमान है कि हमारा शाही हुक्म पहुंचते ही तुम हिदायत जारी कर दो कि कोई भी व्यक्ति ग़ैर-कानूनी रूप से दखलंदाजी न करे और न उन स्थानों के ब्राहम्णों एवं अन्य हिन्दु नागरिकों को परेशान करे। ताकि पहले की तरह उनका क़ब्ज़ा बरक़रार रहे और पूरे मनोयोग से वे हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के लिए प्रार्थना करते रहें। इस हुक्म को तुरन्त लागू किया जाये।’’
इस फरमान से बिल्कुल स्पष्ट हैं कि औरंगज़ेब ने नए मन्दिरों के निर्माण के विरूद्ध कोई नया हुक्म जारी नहीं किया, बल्कि उसने केवल पहले से चली आ रही परम्परा का हवाला दिया और उस परम्परा की पाबन्दी पर ज़ोर दिया। पहले से मौजूद मन्दिरों को ध्वस्त करने का उसने कठोरता से विरोध किया। इस फ़रमान से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि वह हिन्दू प्रजा को सुख-शान्ति से जीवन व्यतीत करने का अवसर देने का इच्छुक था। यह अपने जैसा केवल एक ही फरमान नहीं है। बनारस में ही एक और फरमान मिलता है, जिससे स्पष्ट होता है कि औरंगज़ेब वास्तव में चाहता था कि हिन्दू सुख-शान्ति के साथ जीवन व्यतीत कर सकें। यह फरमान इस प्रकार हैः ‘‘रामनगर (बनारस) के महाराजाधिराज राजा रामसिंह ने हमारे दरबार में अर्ज़ी पेश की हैं कि उनके पिता ने गंगा नदी के किनारे अपने धार्मिक गुरू भगवत गोसाईं के निवास के लिए एक मकान बनवाया था। अब कुछ लोग गोसाईं को परेशान कर रहे हैं। अतः यह शाही फ़रमान जारी किया जाता है कि इस फरमान के पहुंचते ही सभी वर्तमान एवं आने वाले अधिकारी इस बात का पूरा ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति गोसाईं को परेशान एवं डरा-धमका न सके, और न उनके मामलें में हस्तक्षेप करे, ताकि वे पूरे मनोयोग के साथ हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए प्रार्थना करते रहें। इस फरमान पर तुरं अमल गिया जाए।’’ (तीरीख-17 बबी उस्सानी 1091 हिजरी) जंगमबाड़ी मठ के महंत के पास मौजूद कुछ फरमानों से पता चलता है कि
औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभा नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है।
औरंगज़ैब कभी यह सहन नहीं करता था कि उसकी प्रजा के अधिकार किसी प्रकार से भी छीने जाएँ, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। वह अपराधियों के साथ सख़्ती से पेश आता था। इन फरमानों में एक जंगम लोंगों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) की ओर से एक मुसलमान नागरिक के दरबार में लाया गया, जिस पर शाही हुक्म दिया गया कि बनारस सूबा इलाहाबाद के अफ़सरों को सूचित किया जाता है कि पुराना बनारस के नागरिकों अर्जुनमल और जंगमियों ने शिकायत की है कि बनारस के एक नागरिक नज़ीर बेग ने क़स्बा बनारस में उनकी पांच हवेलियों पर क़ब्जा कर लिया है। उन्हें हुक्म दिया जाता है कि यदि शिकायत सच्ची पाई जाए और जायदा की मिल्कियत का अधिकार प्रमानिण हो जाए तो नज़ीर बेग को उन हवेलियों में दाखि़ल न होने दया जाए, ताकि जंगमियों को भविष्य में अपनी शिकायत दूर करवाने के लिएए हमारे दरबार में ने आना पडे। इस फ़रमान पर 11 शाबान, 13 जुलूस (1672 ई.) की तारीख़ दर्ज है। इसी मठ के पास मौजूद एक-दूसरे फ़रमान में जिस पर पहली नबीउल-अव्वल 1078 हि. की तारीख दर्ज़ है, यह उल्लेख है कि ज़मीन का क़ब्ज़ा जंगमियों को दया गया। फ़रमान में है- ‘‘परगना हवेली बनारस के सभी वर्तमान और भावी जागीरदारों एवं करोडियों को सूचित किया जाता है कि शहंशाह के हुक्म से 178 बीघा ज़मीन जंगमियों (शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) को दी गई। पुराने अफसरों ने इसकी पुष्टि की थी और उस समय के परगना के मालिक की मुहर के साथ यह सबूत पेश किया है कि ज़मीन पर उन्हीं का हक़ है। अतः शहंशाह की जान के सदक़े के रूप में यह ज़मीन उन्हें दे दी गई। ख़रीफ की फसल के प्रारम्भ से ज़मीन पर उनका क़ब्ज़ा बहाल किया जाय और फिर किसीप्रकार की दखलंदाज़ी न होने दी जाए, ताकि जंगमी लोग(शैव सम्प्रदाय के एक मत के लोग) उसकी आमदनी से अपने देख-रेख कर सकें।’’ इस फ़रमान से केवल यही ता नहीं चलता कि औरंगज़ेब स्वभाव से न्यायप्रिय था, बल्कि यह भी साफ़ नज़र आता है कि वह इस तरह की जायदादों के बंटवारे में हिन्दू धार्मिक सेवकों के साथ कोई भेदभा नहीं बरता था। जंगमियों को 178 बीघा ज़मीन संभवतः स्वयं औरंगज़ेब ही ने प्रान की थी, क्योंकि एक दूसरे फ़रमान (तिथि 5 रमज़ान, 1071 हि.) में इसका स्पष्टीकरण किया गया है कि यह ज़मीन मालगुज़ारी मुक्त है।
औरंगज़ेब ने एक दूसरे फरमान (1098 हि.) के द्वारा एक-दूसरी हिन्दू धार्मिक संस्था को भी जागीर प्रदान की। फ़रमान में कहा गया हैः ‘‘बनारस में गंगा नदी के किनारे बेनी-माधो घाट पर दो प्लाट खाली हैं एक मर्क़जी मस्जिद के किनारे रामजीवन गोसाईं के घर के सामने और दूसरा उससे पहले। ये प्लाट बैतुल-माल की मिल्कियत है। हमने यह प्लाट रामजीवन गोसाईं और उनके लड़के को ‘‘इनाम’ के रूप में प्रदान किया, ताकि उक्त प्लाटों पर बाहम्णें एवं फ़क़ीरों के लिए रिहायशी मकान बनाने के बाद वे खुदा की इबादत और हमारी ईश-प्रदत्त सल्तनत के स्थायित्व के लिए दूआ और प्रार्थना कने में लग जाएं। हमारे बेटों, वज़ीरों, अमीरों, उच्च पदाधिकारियों, दरोग़ा और वर्तमान एवं भावी कोतवालों के अनिवार्य है कि वे इस आदेश के पालन का ध्यान रखें और उक्त प्लाट, उपर्युक्त व्यक्ति और उसके वारिसों के क़ब्ज़े ही मे रहने दें और उनसे न कोई मालगुज़ारी या टैक्स लिया जसए और न उनसे हर साल नई सनद मांगी जाए।’’ लगता है औरंगज़ेब को अपनी प्रजा की धार्मिक भावनाओं के सम्मान का बहुत अधिक ध्यान रहता था।
औरंगजेब मुगल बादशाह द्वारा बाला जी मंदिर को दी गयी जमीन के कागज पुजारी मंगलदास जी दिखाते हुए
Priest, Mangal Dasji, Balaji Mandir, Ramghat, Chitrakoot
For Balaji Temple space allotted by Emperor Aurangzeb!
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हमारे पास औरंगज़ेब का एक फ़रमान (2 सफ़र, 9 जुलूस) है जो असम के शह गोहाटी के उमानन्द मन्दिर के पुजारी सुदामन ब्राहम्ण के नाम है। असम के हिन्दू राजाओं की ओर से इस मन्दिर और उसके पुजारी को ज़मीन का एक टुकड़ा और कुछ जंगलों की आमदनी जागीर के रूप में दी गई थी, ताकि भोग का खर्च पूरा किया जा सके और पुजारी की आजीविका चल सके। जब यह प्रांत औरंगजेब के शासन-क्षेत्र में आया, तो उसने तुरंत ही एक फरमान के द्वारा इस जागीर को यथावत रखने का आदेश दिया। हिन्दुओं और उनके धर्म के साथ औरंगज़ेब की सहिष्ण्ता और उदारता का एक और सबूत उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर के पुजारियों से मिलता है। यह शिवजी के प्रमुख मन्दिरों में से एक है, जहां दिन-रात दीप प्रज्वलित रहता है। इसके लिए काफ़ी दिनों से पतिदिन चार सेर घी वहां की सरकार की ओर से उपलब्ध कराया जाथा था और पुजारी कहते हैं कि यह सिलसिला मुगल काल में भी जारी रहा। औरंगजेब ने भी इस परम्परा का सम्मान किया। इस सिलसिले में पुजारियों के पास दुर्भाग्य से कोई फ़रमान तो उपलब्ध नहीं है, परन्तु एक आदेश की नक़ल ज़रूर है जो औरंगज़ब के काल में शहज़ादा मुराद बख़्श की तरफ से जारी किया गया था। (5 शव्वाल 1061 हि. को यह आदेश शहंशाह की ओर से शहज़ादा ने मन्दिर के पुजारी देव नारायण के एक आवेदन पर जारी किया था। वास्तविकता की पुष्टि के बाद इस आदेश में कहा गया हैं कि मन्दिर के दीप के लिए चबूतरा कोतवाल के तहसीलदार चार सेर (अकबरी घी प्रतिदिन के हिसाब से उपल्ब्ध कराएँ। इसकी नक़ल मूल आदेश के जारी होने के 93 साल बाद (1153 हिजरी) में मुहम्मद सअदुल्लाह ने पुनः जारी की। साधारण्तः इतिहासकार इसका बहुत उल्लेख करते हैं कि अहमदाबाद में नागर सेठ के बनवाए हुए चिन्तामणि मन्दिर को ध्वस्त किया गया, परन्तु इस वास्तविकता पर पर्दा डाल देते हैं कि उसी औरंगज़ेब ने उसी नागर सेठ के बनवाए हुए शत्रुन्जया और आबू मन्दिरों को काफ़ी बड़ी जागीरें प्रदान कीं।
(mandir dhane ki ghatna)
निःसंदेह इतिहास से यह प्रमाण्ति होता हैं कि औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मन्दिर और गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद को ढा देने का आदेश दिया था, परन्तु इसका कारण कुछ और ही था। विश्वनाथ मन्दिर के सिलसिले में घटनाक्रम यह बयान किया जाता है कि जब औरंगज़ेब बंगाल जाते हुए बनारस के पास से गुज़र रहा था, तो उसके काफिले में शामिल हिन्दू राजाओं ने बादशाह से निवेदन किया कि वहा। क़ाफ़िला एक दिन ठहर जाए तो उनकी रानियां बनारस जा कर गंगा दनी में स्नान कर लेंगी और विश्वनाथ जी के मन्दिर में श्रद्धा सुमन भी अर्पित कर आएँगी। औरंगज़ेब ने तुरंत ही यह निवेदन स्वीकार कर लिया और क़ाफिले के पडाव से बनारस तक पांच मील के रास्ते पर फ़ौजी पहरा बैठा दिया। रानियां पालकियों में सवार होकर गईं और स्नान एवं पूजा के बाद वापस आ गईं, परन्तु एक रानी (कच्छ की महारानी) वापस नहीं आई, तो उनकी बडी तलाश हुई, लेकिन पता नहीं चल सका। जब औरंगजै़ब को मालूम हुआ तो उसे बहुत गुस्सा आया और उसने अपने फ़ौज के बड़े-बड़े अफ़सरों को तलाश के लिए भेजा। आखिर में उन अफ़सरों ने देखा कि गणेश की मूर्ति जो दीवार में जड़ी हुई है, हिलती है। उन्होंने मूर्ति हटवा कर देख तो तहखाने की सीढी मिली और गुमशुदा रानी उसी में पड़ी रो रही थी। उसकी इज़्ज़त भी लूटी गई थी और उसके आभूषण भी छीन लिए गए थे। यह तहखाना विश्वनाथ जी की मूर्ति के ठीक नीचे था। राजाओं ने इस हरकत पर अपनी नाराज़गी जताई और विरोघ प्रकट किया। चूंकि यह बहुत घिनौना अपराध था, इसलिए उन्होंने कड़ी से कड़ी कार्रवाई कने की मांग की। उनकी मांग पर औरंगज़ेब ने आदेश दिया कि चूंकि पवित्र-स्थल को अपवित्र किया जा चुका है। अतः विश्नाथ जी की मूर्ति को कहीं और लेजा कर स्थापित कर दिया जाए और मन्दिर को गिरा कर ज़मीन को बराबर कर दिया जाय और महंत को मिरफतर कर लिया जाए। डाक्टर पट्ठाभि सीता रमैया ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द फ़ेदर्स एण्ड द स्टोन्स’ मे इस घटना को दस्तावेजों के आधार पर प्रमाणित किया है। पटना म्यूज़ियम के पूर्व क्यूरेटर डा. पी. एल. गुप्ता ने भी इस घटना की पुस्टि की है।
(masjid todne ki ghatna oranzeb)
गोलकुण्डा की जामा-मस्जिद की घटना यह है कि वहां के राजा जो तानाशाह के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालगुज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली के नाम से प्रसिद्ध थे, रियासत की मालुगज़ारी वसूल करने के बाद दिल्ली का हिस्सा नहीं भेजते थे। कुछ ही वर्षों में यह रक़म करोड़ों की हो गई। तानाशाह न यह ख़ज़ाना एक जगह ज़मीन में गाड़ कर उस पर मस्जिद बनवा दी। जब औरंज़ेब को इसका पता चला तो उसने आदेश दे दिया कि यह मस्जिद गिरा दी जाए। अतः गड़ा हुआ खज़ाना निकाल कर उसे जन-कल्याण के कामों मकें ख़र्च किया गया। ये दोनों मिसालें यह साबित करने के लिए काफ़ी हैं कि औरंगज़ेब न्याय के मामले में मन्दिर और मस्जिद में कोई फ़र्क़ नहीं समझता था। ‘‘दर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उन लोगों को दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और पनगढंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोडने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए हैं।
Tipu sultan ke baare men is kitab men padhen
https://www.scribd.com/doc/20107281/टीपु-सुल-तान-Tipu-Sultan-Aurangzeb-औरंगजेब-True-Story-Hindi
https://www.scribd.com/doc/20107281/टीपु-सुल-तान-Tipu-Sultan-Aurangzeb-औरंगजेब-True-Story-Hindi
book: इतिहास के साथ यह अन्याय!!-- प्रो. बी. एन. पाण्डेय--:भूतपूर्व राज्यपाल उडीसा एवं इतिहासकार, राज्यसभा के सदस्य और इतिहासकार प्रो. विश्म्भरनाथ पाण्डेय, महात्मा गांधी की वह टिप्पणी ‘यंग इण्डिया में आगे कहा गया है- ‘‘टीपू सुल्तान ने हिन्दू मन्दिरों विशेष रूप से श्री वेंकटरमण, श्री निवास और श्रीरंगनाथ मन्दिरों की ज़मीनें एवं अन्य वस्तुओं के रूप में बहुमूल्य उपहार दिए। कुछ मन्दिर उसके महलों के अहाते में थे यह उसके खुले जेहन, उदारता एवं सहिष्णुता का जीता-जागता प्रमाण है।
साभार पुस्तक ‘‘इतिहास के साथ यह अन्याय‘‘ प्रो. बी. एन पाण्डेय,मधुर संदेश संगम, अबुल फज़्ल इन्कलेव, दिल्ली-25 औरंगज़ेब
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Hindu mandir aur Aurangzeb ke faramin-- (Hindi Book)
हिंदू मन्दिर और औरंगजेब के फरामीन (orders)
On #Aurangzeb, Emperor of Hindustan, 1618-1707 and his relations with Hindus
हिंदू मन्दिर और औरंगजेब के फरामीन (orders)
On #Aurangzeb, Emperor of Hindustan, 1618-1707 and his relations with Hindus
Author: B N Pande ( freedom fighter, social worker, and an eminent parliamentarian in India)
Ataurraḥmān Qasmi
Ataurraḥmān Qasmi
#Hindi Book Link
and
http://www.mediafire.com/download/a8a1311aanm81f6/hindu-mandir-aur-auragzeb-ke-farameen-hindi-book%282%29.pdf
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❤️💚5 Inspirational Muslim Revert Stories"islam enemies now friends"
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Achchha prayaas hai.
ReplyDeleteLekin lekhan men paire par bhi dhyaan den.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मुहम्मद जी के ब्लॉग पे गया और निम्न बातें दिखी और कई सवाल उनके लिए मन मैं आ गई | मुहम्मद भाई जवाब दीजिये समय निकाल कर :
ReplyDelete* हजरत मुहम्मद कल्कि अवतार हिन्दू ग्रन्थ ; प्रश्न : क्या आप हिन्दू धर्म ग्रंथों को स्वीकार करते हैं ? यदि हाँ तो हमारे ग्रंथों मैं भगवान् राम, कृष्ण, शिव , ब्रह्मा .... को प्रमुखता दी गई है , क्या आप राम, कृष्ण, शिव , ब्रह्मा को भगवान् मानते हैं ? यदि नहीं मानते तो क्या ये साबित नहीं होता की आप इतने सारे हिन्दू ग्रंथों की वाणी को नकार के बस दो-चार श्लोक का गलत अर्थ निकाल रहे हैं वो भी अपने फायदे के लिए ?
* हिन्दू ग्रंथों मैं कलियुग का काल लगभग ४,३२,००० वर्ष माना गया है और कल्कि अवतार कलि युग के अंत मैं होगा | आपने ये कैसे मान लिया की कलि युग का अंत हो चुका है ? चलिए आपकी बात थोड़े समय के लिए मान ली, जब आप भविष्य पुराण का reference दे रहे हैं तो उसी भविष्य पुराण मैं राम, कृष्ण, शिव को भगवन माना गया है , इसको आप क्यों भूल रहे हैं ?
* आपने औरंगजेब को हिन्दुओं का हितैसी बताने का भरपूर प्रयास किया है ... हो सकता है सेकुलार्स आपके लिए कोई अवार्ड दिलवा दें | हम हिन्दुओं को ये मत बतएये की औरंगजेब हिन्दुओं का हितैसी था | शायद आपके नजर मैं लाखों हिन्दुओं का कत्लेआम करने वाला शासक ही हिन्दू हितैसी है | हिन्दुओं पे जजिया कर लगानेवाला हिन्दू हितैसी है | हजारों मंदिर तोड़ने वाला हिन्दू हितैसी है | खैर जो भी हो ये आपका अपना विचार है , हम क्यों आपके फटे मैं टांग अदाएं | हम हिन्दू तो ये विश्वास करने से रहें , हाँ कुछ मुस्लिम भाई आपके झांसे मैं जरुर आ जयेंगे |
* कश्मीर मैं कम से कम १०० हिन्दू मंदिर पिछले २० वर्षों मैं थोड़े गए हैं | तोडे गए मंदिरों का पूरा लेखा जोखा आपको Mr. Kaul की पुस्तक मैं मिल जायेंगी | पुस्तक मैं तोडे गए मंदिरों की एड्रेस भी मिल जाएगा | खैर, आप तो इसमें भी बोल सकते हैं की मंदिर हिन्दुओं की भलाई के लिए ही तोडा गया या मंदिर तोडे ही नहीं गए |
वैसे भी kai मुस्लिम भाई हैं जो दुसरे धर्म की bhi इज्जत करते हैं | नहीं तो उनके लिए इस्लाम को ना मानने वाले काफिर हैं | शायद आपकी नजर मैं अहमदिया मुस्लिम , शिया भी काफिर ही हैं |
bhai sahab aap ka question se mujhe bhi thode sawalat puchne ka man hua aapse kya aap mujhe wo sawal ke jawab de sakte hai fursat milne par?
DeletePEHLA QUESTION
aapne kaha islam me khun bahana hi sikhate hai wo baat ya lekh aapne kis jagah se pada balki hamare nabi ne apni sunnat me kaha hai ki revenge lena gunnah hai to janab aap isalm ko bewajah badnam mat kijiye
DUSARA QUESTION
bhai aapne bola hindu logo ka khun bahaya hazrat aurangzeb ne, to janab kya aap bata sakte hai ki us waqt aurangzeb raja the tab hindu raja agar unse salatnat lene ke liye hamla karega to kya aurangzeb baithe rehte ya gift kar dete apni saltanat ? tab ek dusare raja apni saltanat ke liye ladte the to tab dono taraf khun baha hoga koi akele ka to baha nahi hoga.
TISARA SAWAL
bhai aap kuch net pe hamare musalamano pe hue zulm ke bhi pad lijiye
1 vadavali, patan me hua hamala musalmano pe waha bhi muslim maszid me damage kiya gaya
2 muzzfarnagar ke hamle
bhai sahab jo cm adityanath hai abhi UP me unke upar lage kanuni case ko pad lijiye ek baar tab bhi aap ko andaja ho jayega ki aaj muslimo pe aapke yeh politics leader kya kya atyachar karwate hai pith piche
3 gujrat ke dange
4 dadri hatya kand
aishe kafi hai bhai jaha hame insaaf bhi nahi mila
CHAUTHA SAWAL
bhai aap log ham muslim pe yeh ilzam lagate hai ki ham gau hatya karte hai to bhai sahab aap yeh batayiye ki jo abhi haal me jo buchadkhane chal rahe hai usake sahi se owner kon hai jaan likiye bhai fir agar fursat mile to ans dijiyega...
maine sirf apni baat rakhi hai bhai agar aap ko isase koi taklif hui ho to mafi chahta hu
FIFTH ANSWER
jo abhi aap log ram mandir banvana chahte ho usame kya aapne kabhi aisha socha ki nahi do thikse part honge ek masjid ke liye ek mandir ke liye?
bhai aap kamse kam itni to searching karlena google me ki muslim dharmik jagah pe jo RSS ya hindu sasako ne bomb blast karwaye wo doshi 5 saal me chhut jate jabaki pakistan se aane wale tererist ke liye ham bekasuro ko koste ho. bhai yeh bomb blast karne wale bhi kya tererist nahi hai? kya uss kuch kattar ke liye kya ham muslim bhi sabko tererist kahe yeh kya thik hai?
bhai main chahta hu aap agar chanbin kare to dono taraf kare ek tarafa political statement me aakar apna dimag na kharab kare
thank you..
agar kuch galati hui ho to mafi chahta hu
इस्लाम में पहले प्रेषित आदम (अ.स.) से लेके मुहम्मद( स.व) तक लगभग 124000 प्रेषित इसलिए भेजे गए की एक परमेश्वर की तरफ बुलाए। लेकिन जैसे जैसे वक़्त बितते गया प्रेशितो और अन्य को भी भगवान बनाके लोग पूजने लगे।
Deleteआसाराम रामरहीम ताजा उदाहरण है। जब ये आज लोगों को उल्लू बनाते है तो शैतान तो आराम से भटका देगा। शैतान ने इनको खुदा बना डाला। राम आदि जैसे अच्छे किरदार वाले अवश्य ही इस्लाम के हिसाब से प्रेषित हो सकते है। कुरआन भी कहता है की हर समाज में हमने पैगम्बर भेजे है।
शोर्ट में लिखता हु हिन्दू में जो देवता अलग अलग काम करते है तो इस्लाम में ये सब फ़रिश्ते करते है।
और रहा राम युग के बारे में कल ही टीवी न्यूज़ पे दिखाया गया उस बारे में जो आजकल वायरल है और उसमे सच पाया गया। वह short में ये है
राम का जन्म
7131 साल पहले;
10 जनवरी 5114 BC को
श्रीम. सरोज वाला,
निदेशक, इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंटिफिक रिसर्च के
Planotrium research software के मुताबिक़.
131 साल में 1 दिन के फर्क से केवल 41 दिन का फर्क अमेरिकन सॉफ्टवेर के हिसाब से।
काशी विद्वान के हिसाब से
त्रेता युग यानी 18से19 लाख साल पहले जन्म हुआ था
राम नवमी चेत्र शुक्ल पक्ष
1800 सालसे कलयुग चल रहा है।
लाखो साल पहले ये बात सही क्या सरोज मैडम सही आप ही निर्णय ले।
अच्छा प्रयास !
ReplyDeletemohmad tumhare kehne ka matlab
ReplyDeleteaap bar bar likhte hai kalki awtar arb me ho chuka hai
kulki awtar vishnu jee ka hi roop hoga
kya kabhi vishnu jee ne kisi awtar
me kisi par atyachar kiya
jab ki islam ke nam par khun bhaya ja rha hai
kya kabhi vishnu jee ne
shree ram ya shree karishn jee
ne kabhi bhi asa kha
apne kisi bhi guru ko chorkar sirf mujhe mano
jab ki islam sirf yhi kehta hai
kafiro ko khatm kar do
jis parkar asuro ka nash karne ke liye bhagwan sawyam padharte rhe hai
usi parkar kalyug me bhi kulki awtar hoga
rakesh jee ne jasa kha हिन्दू ग्रंथों मैं कलियुग का काल लगभग ४,३२,००० वर्ष माना गया है और कल्कि अवतार कलि युग के अंत मैं होगा | usi parkar dharti ka sara pap fir se saf hoga
@ mehta जी - इस्लाम के नाम पर खून बहाने और काफिरों का मारो का जवाब आपको पुस्तक ''जिहाद और फसाद' या मधोक जी के नाम में पढ लिजिये, काफिरों को मारो एक युद्ध् में संधि ना होने पर उन्हें कत्ल करने के लिये कहा गया था, अर्थात खास मौके के खास हुक्म, जिसकी नौबत ही नहीं आयी थी,
ReplyDeleteअवतार पर पांच किताबें है अध्ययन किजिये काल का जवाब वहीं मिल जायेगा, यह केवल एक धर्म से नहीं हैं इस बातगा पर भी गौर किजिये,
कुछ फुरसत हो तो अल्लाह के चैलेंज पढियेगा
pataa nahi kis itihaas ko padh kar ye binaa sir per ki keh rahe ho..orangzeb ek hatyaaraa thaa jo islaam ke naam par ger majahabio ko maaranaa apanaa dharm samajhataa thaa
ReplyDeleteजनाब ! में मुसलमानों या इस्लाम के खिलाफ नहीं हूँ ! लेकिन जब औरंगज़ेब ने दिल्ली में गुरु तेग बहादुर को चांदनी चौक के चौराहे पर १६७५ में क़त्ल करवाया था तब उसका हिन्दू प्रेम कहाँ चला गया था ! आपने जो लेख लिखा है उसमे कितनी सच्चाई है यह तो में नहीं जानता लेकिन इतना तय है कि औरंगज़ेब बेहद ज़ालिम बादशाह था ! مع السلامة
ReplyDeleteऔरंगजेब पर कुछ और जानकारी बढा लो
ReplyDeleteअदभुत:औरंगजेब द्वारा बनवाया बाला जी मंदिर
लोगो ने चित्रकूट में औरंगजेब द्वारा बनवाया बालाजी का मंदिर देख लिया होता तो यह धर्म के नाम पर लोगो को आपस में लड़वाने पर मजबूर न करते
चित्रकूट में रामघाट के पास मूर्तिभंजक शासक के नाम से मशहुर औरंगजेब ने हिन्दू संत रामदास के कहने से एक बालाजी का मंदिर बनवाया था जो आज हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक बनकर खडा है
http://www.aajkikhabar.com/blog/673631601.html
...............
औरंगजेब भी झुका था छठ पूजा की शक्ति के आगे
http://info.faridabadmetro.com/2010/11/11/औरंगजेब-भी-झुका-था-छठ-पूजा/
औरंगजेब इस शक्ति को देख कर हैरान हो गया। इसके बाद उसने इस पूजा के महत्व को स्वीकारा। इसके बाद प्रत्येक छठी पर वह नियमित रूप से वहां जाकर सूर्य आराधना करते थे।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteखालिद जी, आपने जो कुछ कहा है क्या उससे औरंगजेब द्वारा तोड़े गए हजारों मंदिर का कलंक ख़तम हो जाता है?
ReplyDeleteलाखों बेगुनाह को धर्म के नाम पे मौत के घाट उतारने वाले औरंगजेब को संत बनाने को प्रयास बंद कीजिये|
औरों को छोडिये औरंगजेब तो अपने बाप और भाई तक का नहीं हुआ ... वो महान कब और कैसे बन बैठा? मुझे नहीं लगता की इस्लाम में ऐसे गंदे लोगों को महान कहा जाता है !
khalid bhaiya kaua kitna bhi washing machine mein naha le bagula nahi banega
ReplyDeleteTiwari11: चित्रकूट में औरंगजेब ने बनवाया था बालाजी का मंदिर
ReplyDeletehttp://tiwari11.blogspot.in/2010/10/blog-post.html
Adarniya
ReplyDeleteSriman Ji
Maine aapka yah lekh padha Aurangzeb ke vishay main aapke vichar jaan kar mujhe pata chala ki Hindu aaj bhi kitne pichade hain kewal apne aapko yah dikhane ke liye ki wo Dharmnirpeksh hain kya aap mujhe yeh samjha sakte hai ki jaisa apne likha hai ki Aurangjeb ke padaw se lekar banaras tak 5 meel ke dayre main sahi sena ka pehra baitha to phir kaise koi Pandit jo ki us samay Badshah Salamat (Jisne apne sage bhai Darasikoh ko buri tarah se katla kar diya ho aur apne sage pita ko jisne use paida kiya tha ek qaidi bana kar til til kar mara ho)ki Hindu praja hua karte the wo itna bada Gunah-e-Azeem karne ki himmat kar sake aur yadi aap ki baat maan bhi li jaye ki Mandir napak ho gaya tha to mera yah prasha hai ki Hindu Mandir ko tod kar waha par Masjid banane ki kya zaroot mahsoos hui jabki woh jagah napak ho gai thi aur Kashi Wishwanath Ji ki murti ki pran partishtha kahi aur kar di jane ka adesh diya gaya tha kya kisi napak jagah par Mandir Banana gair Kanooni hai aur Masjid banana sahi hai.......................! aur jaisa ki aapne kaha hai ki usne kai mandiron ko jageerein pradan ki aur unko madat di to is barfe main mera yeh vichar hai ki hamare Hindu Dharm main gaddron/chatukaron ki kami nahi rahi hai jinke uttradhikari aaj bhi hain aur Musalmano ke talwe chat kar aaj bhi apna matlab nikalte hain (Exp: Jaichand jisne Prithawi Raj ko dhokha diya kewal satta pene ke liye ya Raja Maan Singh jinhone Akbar ka saath diya aur sath hi nahi diya wran apni laki Jodha Bai ka vivah bhi uske saath kiya) kya aap mujhe samjha sakte hain ki Sikkho ne aur Shiva Ji ne unke khilaf ladaiyan kyon ladi kya ye sabhi pagal the ji nahi ye wo log the jinhone Muglon ke talwe nahi chate aur apni bahu betiyon ki izzat apni jaan se bhi zyada pari thi ) kya aisa nahi hua hoga ki jin Mandiron ko anudan wa Jagiren di gai wo log kewal Jaichand aur Maansingh ki parampara ko kayam rakh rahe the………………..!
Aur jaisa ki aap kehte hain ki usne mandir nahi to aap unke samkaleen kuch kaviyon ko padhen jaise Sri Krishna ki Bhumi Brij ke kavi Shri SOOR KISHOR ko padhen aur us par bhi aapke Gyan Cahakshu na khule to krapiya uske dwara kiye gaye ATYACHARON aur tahakathit SADACHARON ka ek ANUPAT nikal kar dek lijiye…………..!
Mera app se vinamra niwedan hai ki aap mujhe KATTAR HINDU na samjhen lekin maine wo likya hai jo mere dil main tha aur jo satya tha main koi rajneta nahi hun mera ashay kewal itna hai ki aap tasvir ke dosare pahlo ko andekha na kare……………….!
Yadi maine aap ko dukhi kiya hai to kshama prarthi hun main ek aam admi hun aura apse kam gyani………! Lekin main GALAT ko SAHI nahi maan sakta……….!
Aap yedi chae to mujhe mere prashna ko uttar dijiye devashishjaiswal@gmail.com
Dhanywad
JAI HIND
dev bhai sayad aapne thikse pada nahi hai mandir todke waha masjid nahi banai gayj thi masjid wala wakia alag se hai.
Delete2 dusari baat aurangzeb raza ke bhaiyo me sab buri tarah se nase ke lat wale the wo mugal saltanat ko kuch nahi de sakte the iss liye unko marna pada
3 shah jahan ne jo apni chaht ko anjam dene ke liye jo taj mahal banwaya wo chiz galat thi, sah jahan ne jo mazduro ke hath kate the wo galat tha, jo paiase unhe apni saltanat ke bhale me kharch karna tha wo unhone apne pagalpan me kardiya uss baat se khilaf the aurangzeb.
4 bhai aurangzeb ne apni pure sasan kal me mugal saltanat ka paisa use nahi kiya tha wo kuraan likh kar jo paisa milta usase apna gujara karte the.
5 ek wakiye me ek hindu ladki ki sikayat se aurangzed ne apne mantri ko umarked ki saza di thj yeh bhi aap pad lijiye
6 aap jo log ne cooment kiya hai koi proof lakar dijiye jaise bhai ne diya hai iss lekh me khamakha kisi dharm pe ilzam mat lagaiye
Picture: 33-Priest, Mangal Dasji, Balaji Mandir, Ramghat, Chitrakoot
ReplyDeleteFor Balaji Temple space allotted by Emperor Aurangzeb!
Link:
http://www.flickr.com/photos/42182385@N08/4104962295/
क्या औरंगजेब की वह रानी एक दम बिना सीक्योरिटी के गयी थी , अन्य रानियों के साथ नहीं थी, अन्य रानियों व सुरक्षा सैनिकों ने उसी समय क्यों नहीं देखा ....सब झूठ ही लगता है ....भारत के वादशाह की रानी इस प्रकार गायब....
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