1400 वर्ष पूर्व अल्लाह ने कुरआन में यहूदियों (इसराईलियों) के बारे में कहा थाः
यहूदी जाती लम्बे समय से, जिस तरह रह-रह कर ज़लील रूसवा और तबाह बरबाद होती चली आ रही है वह अपनी मिसाल आप है। कभी आशूरियों ने उन्हें कुचला, कभी बाबिल के शासक बख़्ते नस्र ने उनकी ईंट से ईंट बजा कर रख दी, कभी रूमी राजा टटयूस ने उन्हें बरबाद कर दिया, कभी मुसलमानों के हाथों उन्हें क़त्ल, वनवास और दासता की यातनाएं भुगतनी पडीं, कभी हिटलर उन कर क़हर बन कर टूटा। इतिहास यहूदियों की रूसवाइयों और बरबादियों की शिक्षाप्रद घटनाओं से भरा पडा है। आजकल फिलिस्तीनीयों ने उनका जीना हराम कर रखा है। वह कभी अपने चारों तरफ दीवारे करते हैं कभी फिलिस्तीन पर बम्बारी करते हैं। एक फिलिस्तीनी मरता है तो उसके पीछे कितने उसके अज़ीज इसराईल के दुश्मन होजाते हैं जो कियामत तक उसे शांति नही मिलने देंगे। 1400 वर्ष से आज तक और आगे भी कभी इनको शांति नसीब नहीं होगी।
अल्लाह ने कुरआन में हमें इनकी सबसे बडी कमजोरी बतायी अर्थात बताया कि यह मौत से भागते हैं,,, अर्थात डरते है
कह दो, "मृत्यु जिससे तुम भागते हो, वह तो तुम्हें मिलकर रहेगी,
Say, "Indeed, the death from which you flee - indeed, it will meet you. ." (Quran 62:8)
http://tanzil.net/#trans/en.sahih/62:8
कुरआन के बारे में खुली दावत है छानबीन करें। लगभग सभी भाषाओं में कुरआन का अनुवाद मिल जाता है। सबको चाहिए कि इसके औचित्य को जांचने और सच्चाई मालूम करने की कोशिश करे। बुद्धिजीवी किसी ऐसी चीज को नज़रन्दाज़ नहीं कर सकता, जो उसके शाश्वत राहत का सामान होने की सम्भावना रखती हो और छान-बीन के बाद शत-प्रतिशत विश्वास में निश्चित रूप से बदल सकती हो।
Quran हर काव्य से श्रेष्ठ, कोई दूसरा काव्य इसे नीचा नहीं दिखा सकता।
सोचिये क्या ऐसी वैज्ञानिक व बौद्धिक दलीलें किसी पुस्तक में मिलती हैं? जैसी कुरआन में हैं।
नहीं मिलती तो मान लिजिये कि कुरआन ही निश्चित रूप से खुदाई कलाम अर्थात ईशवाणी है बाकी सब झूठ।
इस विषय पर और अधिक जानकारी के लिए पढें
अहले किताब (यहूदी और ईसाई) और धार्मिक मानवता के लिए कुरान का सम्मानः एक प्रमाण
response "quran says about non muslims" for English article:
The Qur’an’s Regard for the People of the Book (Christians and Jews) And the Believing Humanity– A Living Testimony
URL for Urdu article:
اہل کتاب (یہودی اور عیسائی)اور معتقد انسانیت کے سلسلے میں قرآن کا احترام: ایک شہادت
अनुवादः और याद करो जब तुम्हारे रब ने ख़बर कर दी थी कि वह क़ियामत के दिन तक उनके विरुद्ध ऐसे लोगों को उठाता रहेगा, जो उन्हें बुरी यातना देंगे। निश्चय ही तुम्हारा रब जल्द सज़ा देता है और वह बड़ा क्षमाशील, दावान भी है -सूरः अराफः 7: 167
And [mention] when your Lord declared that He would surely [continue to] send upon them until the Day of Resurrection those who would afflict them with the worst torment. Indeed, your Lord is swift in penalty; but indeed, He is Forgiving and Merciful. (Quran 7:167)अमरीका दोस्ती में उन्नती तो मिली शांति नहीं मिली। इस चैलेंज को भी सारी दुनिया मिलके झुटलाने कि कोशिश करले एक छोटे से मुल्क में शांति स्थापित करदे, ऐसा अगर हो जाये जोकि 14 सौ वर्ष से ना होसका तब दुनिया में कहीं फिर मुसलमान नहीं मिलेगा।
यहूदी जाती लम्बे समय से, जिस तरह रह-रह कर ज़लील रूसवा और तबाह बरबाद होती चली आ रही है वह अपनी मिसाल आप है। कभी आशूरियों ने उन्हें कुचला, कभी बाबिल के शासक बख़्ते नस्र ने उनकी ईंट से ईंट बजा कर रख दी, कभी रूमी राजा टटयूस ने उन्हें बरबाद कर दिया, कभी मुसलमानों के हाथों उन्हें क़त्ल, वनवास और दासता की यातनाएं भुगतनी पडीं, कभी हिटलर उन कर क़हर बन कर टूटा। इतिहास यहूदियों की रूसवाइयों और बरबादियों की शिक्षाप्रद घटनाओं से भरा पडा है। आजकल फिलिस्तीनीयों ने उनका जीना हराम कर रखा है। वह कभी अपने चारों तरफ दीवारे करते हैं कभी फिलिस्तीन पर बम्बारी करते हैं। एक फिलिस्तीनी मरता है तो उसके पीछे कितने उसके अज़ीज इसराईल के दुश्मन होजाते हैं जो कियामत तक उसे शांति नही मिलने देंगे। 1400 वर्ष से आज तक और आगे भी कभी इनको शांति नसीब नहीं होगी।
अल्लाह ने कुरआन में हमें इनकी सबसे बडी कमजोरी बतायी अर्थात बताया कि यह मौत से भागते हैं,,, अर्थात डरते है
कह दो, "मृत्यु जिससे तुम भागते हो, वह तो तुम्हें मिलकर रहेगी,
Say, "Indeed, the death from which you flee - indeed, it will meet you. ." (Quran 62:8)
http://tanzil.net/#trans/en.sahih/62:8
कुरआन के बारे में खुली दावत है छानबीन करें। लगभग सभी भाषाओं में कुरआन का अनुवाद मिल जाता है। सबको चाहिए कि इसके औचित्य को जांचने और सच्चाई मालूम करने की कोशिश करे। बुद्धिजीवी किसी ऐसी चीज को नज़रन्दाज़ नहीं कर सकता, जो उसके शाश्वत राहत का सामान होने की सम्भावना रखती हो और छान-बीन के बाद शत-प्रतिशत विश्वास में निश्चित रूप से बदल सकती हो।
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नहीं मिलती तो मान लिजिये कि कुरआन ही निश्चित रूप से खुदाई कलाम अर्थात ईशवाणी है बाकी सब झूठ।
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इन ब्लोग्स पर भी नज़र डालें
ReplyDeleteमेरे मेल एड्रेस पर मुझसे संपर्क
करेंगे तो अच्छा लगेगा
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1400 वर्ष पूर्व अल्लाह ने कुरआन में यहूदियों (इसराईलियों) के बारे में कहा थाः
ReplyDeleteअनुवादः ‘‘....वह (यानी अल्लाह) उन पर कियामत तक ऐसे लोगों को मुसल्लत करता रहेगा, जो उन्हें भयानक मुसीबतों में डालेंगे।’ -सूरः अराफः 167
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kya khuda bhi hitlar ki tarag racist hai?
oracle_22 आपको शायद यह खबर न होगी कि ईसाई ,यहूदी इसी कुरआन वाले अल्लाह के ही मजहब हैं जिन्हें इसी अल्लाह ने किताब दी थी जब जादू पर विश्वास करते थे तो मुसा अ. को जादूई लठ/छडी दी थी, फिर उसके बाद ईसा को जीवित करने की शक्ति देकर भेजा, जब मानव पूरी तरह विकसित हो गया तो फिर भेजा अन्तिम अवतार antimawtar.blogspot.com
ReplyDeleteइसको यूं समझें कि जो जादूई जमाने की किताब को मानता रहेगा उसके लिये यह सजा है यहूदी के लिये इस दुनिया में भी सजा है उसे कभी शान्ति न मिलेगी, इस खास सजा से बचने के लिये वह कोई धर्म अपना सकता है
अन्तिम अवतार के अलावा किसी की बात मानेगा तो उसके लिये अलग सजायें हैं इस लिये हमें चाहिये कि विचार करें कि
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विचार करें कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि
(इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्टा? हैं या यह big Game against Islam है?
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